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________________ [ ११ ] निश्चय - परमावश्यक अधिकार en. अथ सांप्रतं व्यवहारषडावश्यकप्रतिपक्षशुद्धनिश्वयाधिकार उच्यते । जो ग हवदि प्रणवसो, तस्स दु कम्मं भणति श्रावासं । कम्मविणासणजोगो, रिगव्वुविमग्गो ति पज्जुत्तो' ॥१४१ ॥ जाता है यो न भवत्यन्यवशः तस्य तु कर्म भणन्त्यावश्यकम् । कर्म विनाशनयोगो निर्वृत्तिमार्ग इति प्ररूपितः ॥ १४१ ॥ वसंततिलका छेद जो अन्य के वश नहीं वह नहि पराश्रित । उसका हो कर्म बस आवश्यक कहाता ।। श्री कर्म नाशकृत योग सुयोगियों का । निर्वाण मार्ग वह ही सच में कहाता ।।१४१ ॥ अब व्यबहार, पट् आवश्यक से प्रतिपक्ष ऐसे शुद्धनिश्चय अधिकार को कहा गाथा १४१ अन्वयार्थ -- [ यः अन्यवशः न भवति ] जो अन्य के वश नहीं है [ तस्य तु कर्म श्रावश्यकं ] उसकी क्रिया को आवश्यक [ भांति ] ऐसा कहते हैं (क्योंकि) [ कर्म १. पिज्जूतो ( क ) पाठा. ।
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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