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________________ [ ३२३ शुद्धनिश्चय-प्रायश्चित्त अधिकार क्लेशं तमाप किल बाहुबली चिराय मानो मनागपि हति महतीं करोति ॥" भावार्थ-भरत चक्रवर्ती जब छहों खण्डों को जीतकर वापिस अयोध्या आये सब उनका चक्ररत्न नगरी के बाहर द्वार पर ही रुक गया। कारण विदित करने पर मालूम हुआ कि आपयः भाई आपके वश में नहीं हैं, तब अन्य भाई के दीक्षित होने के बाद बाहुबलि ने युद्ध का प्रसंग आया । मंत्रियों द्वारा निर्धारित जन्न युद्ध. दृष्टि युद्ध और मल्ल युद्ध में भग्त हार गये और बाह बलि बिजयी हुए तत्र भरत ने क्रुद्ध होकर बकरन चला दिया, यह नवरत्न बालबलि की प्रदक्षिणा देकर उनके हाथ पर स्थित हो गया। इस घटना से बाहव लि न बिरक्त ही दीक्षा लेकर एक वर्ग का योग ले लिया । इस प्रनिगा योग के समाप्त होने पर भरत चक्रवर्ती ने आकर उनकी पूजा को और तब उन्हें के ना जान उत्पन्न हो गया। इसके' पुर्व उनके हृदय में थोड़ी मी ऐमी चिन्ता रही कि मेरे द्वाग भरत श्वर्ती को मयालेण हुआ है. इसीलिये उन्हें केवलज्ञान प्राप्त नहीं हुआ और भरत क्रवर्ती के द्वारा पूजित होने पर तन्काल उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया नथा अजनसेन स्वामी ने तो कहा है कि इन्हें ध्यानावस्था में मनःपर्ययनान आदि अनेकों दियां उत्पन्न हो गई थी, जिसमें बहन से विद्याधर आदि अपना कष्ट निवारण किया करते थे । मो मार्शलगी छठे सातवें गुणस्थान हुए बिना ऋद्धियों का होना तथा मनः प्रयज्ञान का होना असम्भव है । न तथा प उमरिन में ऐसा कहा है कि "मैं भरत की भूमि में स्थित हं ऐसी ही सी कषाय के विद्यमान रहने से उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। १. संक्लिटो भरताधीशः सोऽस्मत्त इति यत्किल । हृद्यस्य हार्द तेनासीत् तत्पूजापेक्षि केवलम् ॥१८६।। १२. मादि पु. दि. भाग पर्व ३६, श्लोक १४४ से १४ तक देखिये । । ३. पउमरिउ, ५, १३, १६ । UP"LAAEE. . .tk
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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