SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० ] नियमसार अथ पंचरत्नावतार: । णाहं णारयभावो, तिरिथत्यो मणुवदेवपज्जाश्रो । कत्ता रग हि कारइदा, प्रणुमंता व कत्तीणं ॥७७॥ नाहं मग्गठाणो, साहं 'गुणठाण जीवठारणो ण । कत्ता स हि कारइदा, प्रणुमंता पेव कती ॥७८॥ पाहं बालो बुढो, ण चैव तरुणो रग कारणं तेंसि । कत्ता रग हि कारइदा, श्रणुमंता णेव कत्तीणं ॥ ७६ ॥ णाहं रागो दोसो, ण चैव मोहो र कारणं तेसि । कत्ता ण हि कारइदा, श्रणुमंता व कत्तीणं ॥ ८०॥ णाहं कोहो माणो ण चैव माया ण होमि लोहो हं । कत्ता ण हि कारइदा, प्रणुमंता णेव कतीरा ॥ ८१ ॥ नाहं नारकभावस्तिर्यङ मानुषदेवपर्यायः । कर्ता न हि कारयिता अनुमंता नैव कर्तृणाम् ॥७७॥ अव पांचनों का अवतार होता है गाथा ७७ से ८ १ - अन्वयार्थ – [ श्रहं ] मैं [ नारकभावः तिर्यङ मानुषदेवपर्यायः न ] नारक पर्याय, नियंत्रपर्याय, मनुष्यपर्याय अथवा देवपर्यायरूप नहीं हूं, [ कर्ता न हि कारयिता ] मैं उनका कर्ता नहीं हूं, कराने वाला नहीं हूं और [ कर्तृणां अनुमंता न एव ] करने वालों का अनुमोदन करने वाला भी नहीं हूं । J I [ अहं मार्गेणास्थानानि न ] मैं मार्गणास्थानरूप नहीं हूं, [ अहं गुणस्थानानि वा जीवस्थानानि न ] मैं गुणस्थानरूप अथवा जीवसमासरूप नहीं हूं, [ कर्ता न हि कारयिता कर्तृणां अनुमंता न एवं ] मैं उनका करने वाला कराने वाला और करते हुए की अनुमोदना करने वाला भी नहीं हूं । J १. गुणठाण तहेव जीवठाणाणि (क) पाठान्तर |
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy