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________________ [ १५७ व्यवहारचारित्र अधिकार (मालिनी) जयति विवितमोक्षः पद्मपवायत्मक्षः प्रजितरितकक्षः प्रास्तकंदर्पपक्ष: पदयुगनतयक्षः तत्त्वविज्ञानदक्षः कृतबुधजनशिक्षः प्रोक्तनि णदीक्षः ॥१६॥ (मालिनी ) मवननगसुरेशः कान्तकायप्रदेशः पविनतयमीशः प्रास्तकीनाशपाशः दुरघवनहुताशः कोतिसंपूरिताशः जयति जगदधीश: चारुपद्मप्रभेश: ॥१००। जिनके श्रीचरणों में राजागण नमस्कार करते हैं, जिन्होंने क्रोध को जीत लिया है और जिनके निकट विद्वानों का ममह नन हो रहा है पोमे वे श्री पद्मप्रभ भगवान् जयवंत हो रहे हैं ।।१८।। (BE) श्लोकार्थ-जिन्हान मोक्ष को जान लिया-प्राप्त कर लिया है, जिनके नेत्र कमलदल के समान बिस्तृत हैं, जिन्हान दुरितकक्ष-पापसमूह को जीत लिया है, जिन्होंने कामदेव के पक्ष को समाप्त कर दिया है, जिनके चरणयुगल में यक्षदेव नमन करते हैं, जो तत्त्वों के विज्ञान में दक्ष हैं, जिन्होंने विद्वान् जनों को शिक्षा दी है और जिन्होंने निर्वाणदीक्षा के स्वरूप को कहा है ऐसे थीजिनपद्मप्रभ भगवान् जयशील होते हैं ।।९९॥ (१००) श्लोकार्थ—जो कामदेवरूपी पर्वत के लिए सुरेन्द्र हैं अर्थात् जैरा इंद्र वज्र से पर्वत को फोड़ डालता है वैसे ही भगवान् कामदेव के मद को चूर चूर करने वाले हैं, जिनके शरीर के प्रदेश अतीय सुन्दर हैं, जिनके चरणों में संयमधारी मुनिवर विनत रहते हैं, जिन्होंने यमराज के जाल को समाप्त कर दिया है, जो दुष्ट पापरूपी धन को भस्म करने के लिए अग्निस्वरूप हैं, जिन्होंने अपनी कीर्ति रो संपूर्ण दिशाओं को व्याप्त कर दिया है, जो भुवन के अधीश हैं ऐसे सुन्दर पद्मप्रभस्वामी जयशील होते हैं, अथवा ऐसे सुन्दर पद्मप्रभमुनिराज के स्वामी श्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्र जयवंत हो रहे हैं ।।१०।।
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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