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________________ : ~ प्रस्तावना आचार्य श्री कुन्दकुन्द कुन्वकुन्दाचार्य और उनका प्रभाव : दिगम्बर जैनाभार्थी में कुन्दकुन्द का नाम सर्वोपरि है। मूर्तिले पूर्वाचार्यों के संस्मरणों में कुन्दकुन्द स्वामी का नाम बड़ी श्रद्धा के साथ लिया मिलता है । मङ्गलं भगवान्वीरो मङ्गलं गौतम गणी मङ्गलं कुभ्वकुन्दायों जैनधर्मोऽस्तु मङ्गलम् ॥ शिलालेखों, ग्रन्थप्रशस्ति लेखों एवं इग मंगल पद्म के द्वारा भगवान् महावीर और उनके प्रधान घर गोनम के बाद कुन्दकुन्द स्वामी को मंगल कहा गया है। इनकी प्रशस्ति में कविवर वृन्दावन का निम्नांकित सामन्त प्रसिद्ध है, जिसमें बतलाया कुन्मान हुआ है, मरे, और न होग सुनी आम के मुखारविन्दतें प्रकाश पासव स्यादवाद जैन चैन इंद कुम्बकुन्द से तास के अभ्यास विकास मेव जश्न होत मूढ सो सखे नहीं कुबुद्धि कुन्दकुन्द से । देत हैं अशीस शीस नाय इन्द चंद जाहि मोह मार खंड भारतंड कुकुन्द से विशुद्धि बुद्धि वृद्धिया प्रसिद्ध ऋद्धि सिद्धिया एननद कुन्दकुन्द मे ।। तत्वका विशद यांन । समयसार आादि ग्रन्थों में उन्होंने परसे भिन्न तथा स्वकीय श्री कुन्दकुन्द स्वामी के इस जयघोषका कारण है उनके द्वारा प्रतिपादित वस्तुतस्यका विशेषतया प्रात्मपर्यायों से प्रति श्रस्मा उन्होंने इन ग्रन्थों में अध्यात्म धारा रूप जिस मन्दाकिनी को अवगाहन कर भवभ्रमण श्रान्त पुरुष शाम्यत जान्ति को प्राप्त का जो वर्णन किया है। वह अन्यत्र दुर्लभ है। प्रवाहित किया है उसके शीतल एवं पावन प्रवाहमें करते हैं ।
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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