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________________ मा व्यवहारचारित्र श्रधिकार [ १७३ मुनीनां कायमलादित्यागस्यानशुद्धिकथनमिदम् । शुद्धनिश्चयतो जीवस्य देहाभावान चान्नग्रहणपरिणतिः, व्यवहारतो देहः विद्यते, तस्यैव हि देहे सति ह्याहारग्रहणं भवति, आहारग्रहणान्मलमूत्रादयः संभवन्त्येव अत एव संयमिनां मलमूत्रविसर्गस्थानं निर्जन्तुकं परेषामुपरोधेन विरहितम्, तत्र स्थाने शरीरधमं कृत्वा पश्चात्तस्मात्स्थानादुसरेण कतिचित् पदानि गत्वा ह्य्बङ मुखः स्थित्वा चोत्सृज्य कायकर्माणि संसारकारणं परिणामं मनश्च संसृतेनिमित्तं स्वात्मानमव्यग्रो भूत्वा ध्यायति यः परमसंयमी मुहुर्मुहुः कलेवरस्याध्यशुचित्वं वा परिभावयति, तस्य खलु प्रतिष्ठापन समितिरिति । नान्येषां स्वरवृतीनां यतिनामधारिणां काचित् समितिरिति । टीका -मुनियों के शरीर के मलादि त्याग करने के लिए स्थान की शुद्धि का यह कथन है । शुद्ध निञ्चवनय से जीव के शरीर का अभाव होने से भोजन को ग्रहण करने की परिणति नहीं है, किंतु व्यवहारनय से देह है अतः उस जीव के ही शरीर के होने पर निश्चित रूप से आहार ग्रहण होता है, आहार के ग्रहण करने से मल-मूत्रादि होते ही हैं, इसीलिये संयमियों के मल-मूत्र विसर्जन के स्थान को निर्जंतुक और अन्य जनों के रोक-टोक से रहित कहा है, उस स्थान में शरीरधर्म को करके पश्चात् उस स्थान से उत्तर में या आगे कुछ डग जाकर वहां उत्तर दिशा में मुख करके खड़े होकर काय की क्रिया का त्याग करके अर्थात् कायोत्सर्ग करके तथा संसार के कारणभूत परिणाम का और संसार के निमित्तस्वरूप मन का भी त्याग करके निराकुल चित्त होकर जो - परमसंयमी अपनी आत्मा का ध्यान करते हैं अथवा शरीर की अपवित्रता का पुनः पुनः - विचार करते हैं, उनके निश्चित ही प्रतिष्ठापनसमिति होती है । अन्य यतिनामधारी स्वच्छंद प्रवृत्ति वाले साधुओं में कोई भी समिति नहीं होती है । विशेषार्थ -- साधुओं को मल-मूत्र विसर्जन के कायोत्सर्ग करने में पच्चीम - स्वासोच्छ्वास का विधान है। और देववंदना, स्वाध्याय आदि क्रियाओं में जो कायोत्सर्ग होता है उसमें सत्ताईस श्वासोच्छ्वास होते हैं । | आगे पद्मप्रभमलधारिदेव समिति के प्रकरण की टीका पूर्ण करते हुए - समितियों का महत्त्व और उनके पालन करने का फल बतलाते हुए तीन श्लोकों में अपने उद्गार प्रगट करते हैं— |
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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