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________________ १६४ ] नियमसाय अत्र भाषासमितिस्वरूपमुक्तम् । कर्णेजपमुखविनिर्गतं नृपतिकर्णाभ्यर्णगतं चैकपुरुषस्य एककुटुम्बस्य एकग्रामस्य वा महाविपत्कारणं वचः पशून्यम् । क्वचित् कदाचित् किंचित् परजनविकाररूपमवलोक्य त्वाकर्ण्य च हास्याभिधाननोकषायसमुपजनितम् ईषच्छभमिश्रितमप्यशुभकर्मकारणं पुरुषमुखविकारगतं हास्यकर्म । कर्णशष्कुलीविपराम्पर्णगोचरमात्रेण परेषामप्रतिजननं हि कर्कशवचः । परेषां भूताभूतदूषणपुरस्सरवाक्यं परनिन्दा । स्वस्य भूताभूतगुणस्तुतिरात्मप्रशंसा । एतत्सर्वमप्रशस्तवचः परित्यज्य स्वस्य च परस्य च शुभशुद्धपरिणतिकारणं वचो भाषासमितिरिति । तथा चोक्त श्रीगुणभद्रस्वामिभि :-- -- - - - -- - - - - - - - - - - -- -- हितं वदतः भाषासमितिः] स्त्र और पर के हितरूपबचन को बोलने वाले साधुके भाषा समिनि [स्यात्] होती है । टीका-यहां भाषासमिति का स्त्रम्प कहा है 1 चगलखोर के मुख से निकले हाए और राजा के कान तक पहुंचे हये वचन, जो कि एक पुरुष, एक कुटुम्ब अथवा एक ग्राम के लिये महान विपति के कारणभुत हैं वे पैशून्य बचन हैं । कहीं पर कदाचित् किचित् अन्यजनों के विकृतरूप को देखकर या सुनकर हास्य नाम के नो कषाय में उत्पन्न हुआ किचित् शुभ से मिश्रित होते हुये भी अशुभकर्म के लिये कारणभूत पुरुष के मुग्य के विकार को जो प्राप्त हुआ है वह 'हास्य कर्म कहलाता है । जो कानरूपी शष्कली-पूड़ी के छिद्र के पास पहुंचने मात्र से अन्य जनों को अप्रीति उत्पन्न करने वाले हैं वे कर्कश वचन कहलाते हैं। दूसरों के विद्यमान या अविद्यमान दुषण को कहने वाले वचन परनिंदा हैं। अपने विद्यमान अथवा अविद्यमान गुणों की स्तुति करना आत्मप्रशंसा है। इन सभी अप्रशस्त वचनों का त्याग करके अपने और पर के शुभपरिणति और शुद्ध परिणति के लिये कारणभूत वचन बोलना भाषासमिति कहलाती है। ऐसे ही श्री गुणभद्रस्वामी ने भी कहा है--
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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