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________________ - - - १०२ ] नियमसार पुद्गलद्रव्यं मूतं मतिविरहितानि भवन्ति शेषाणि । चैतन्यभावो जीवः चैतन्यगुणजितानि शेषाणि ॥३७॥ पुद्गल दरब मूर्तिक कहा रूपादिमान हैं । और शेष प्रमूर्तिक कहें वर्णादि शून्य हैं ।। बस जीव हैं चैतन्य भाव युक्त जगत में । चैतन्य गुण से शून्य शेष द्रव्य हैं सच में ।।३७।। अजीवद्रव्यव्याख्यानोपसंहारोयम् । तेषु मूलपदार्थेषु पुद्गलस्य मूर्तत्वम् इतरेधाममूर्तत्वम् । जीवस्य चेतनत्वम्, इतरेषामचेतनत्वम् । स्वजातीयविजातीयबन्धनापेक्षया जीवपुगलयोरशुद्धत्वम्, धर्मादीनां चतुणां विशेषगुणापेक्षया शुद्धत्वमेवेति । मा अन्वयार्थ- [ पुद्गलद्रव्यं मूर्त ] पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है [ शेषाणि ] शेष पांच द्रव्य [ मूतिविरहितानि ] मूर्तिक अवस्था से रहित अमूर्तिक हैं [ जीवः चतन्यभावः] जीव चैतन्य स्वभाव वाला है [ शेषाणि ] शेष पांचद्रव्य [चंतन्यगुणजितानि] चैतन्य गुण से वजित हैं । ____टीका-अजीव द्रव्य के व्याख्यान का यह उपसंहार है । उन मूल पदार्थ-छहों द्रव्यों में से पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है, अन्य शेष पांच द्रव्य अमतिक हैं। जीव चेतन गुण वाला है, शेष पांच द्रव्य अचेतन गुण वाले हैं। स्वजातीय और विजातीय बन्धन की अपेक्षा से जीव और पुद्गल में अशुद्धपना है, शेष धर्म, अधर्म, आकाश और काल में विशेषगुण की अपेक्षा से शुद्धपना ही है। विशेषार्थ-जीव और पुद्गल में ही विभाव गुण पर्याय होती हैं अतः ये दो द्रव्य ही अशुद्ध होते हैं, शेष चार द्रव्य कभी भी अशुद्ध नहीं होते हैं। यहां पर स्वभाव की अपेक्षा से जीव को प्रमूर्तिक कहा है किन्तु अन्यत्र ग्रन्थों में कर्मबन्ध की अपेक्षा से संसारी जीव को कथंचित् मर्तिक भी कहा है । यथा
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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