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________________ नियमसार-प्राभृतम् अंतरद्वीपजाः म्लेच्छाः कुभोगभूम्युभवमनुष्याः इति । कर्मभूमिजाश्च शकयवनशबरपुलिन्दादयः । एषां विस्तरः तत्वार्थराजवातिकग्रन्थे विलोकनीयः । .. असउद्योदयापादितशीतोष्णवेवनया नरान् कायन्ति शब्दायन्ते इति नरकाणि. तेषु भवा नारकाः। रत्नशर्फराबालुकापङ्कधूमतमोमहातमःप्रभेतिनामधेयाः सप्तभुमयः, अथवा धर्मावंशामेघराजनारिष्ट्रामघवीमाधवीनामानश्च । तासु क्रमेण त्रिंशत्पंचविंशति-पंचदशवशत्रिपञ्चोनकलक्षाणि पञ्च च बिलानि सन्ति । तत्रोत्पन्नेष नारकेष शरीरावगाहनालेश्यायुर्वेदनादिभि:दो जायतेऽतः सप्तपथिव्यपेक्षया नारकाः सप्तधा विवक्षिताः। तिरयन्ति कुटिलभावं गच्छन्तीति तिर्यञ्चः, तेऽपि बावरैफेंद्रियसूक्ष्मैकेन्द्रियद्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियासंज्ञिपंचेंद्रियसंज्ञिपञ्चेन्द्रियभेदैः सप्तधा पुनश्च ते पर्याप्तापर्याप्तभेदात् चतुर्दशप्रकारा भवन्ति । लवण समुद्र और कालोद समुद्र के अंतर्गत जो ९६ अंतरद्वीप हैं, उनमें उत्पन्न हुए मनुष्य अंतरद्वीपज म्लेच्छ हैं । ये मनुष्य कुभोगभूमि में उत्पन्न होने वाले हैं । कर्मभूमिज म्लेच्छ शक, यवन, भोल-आदिवासी आदि मनुष्य हैं। इनका बिस्तार तत्त्वार्थराजवातिक ग्रन्थ में देखना चाहिये । 'असातावेदनीय के उदय से होने वाली शीत-उष्ण आदि वेदना से जो नरों को-जीवों को जो दुःख देते हैं---शब्द'कराते हैं वे नरक हैं । उनमें उत्पन्न हए जीव 'नारकी' कहलाते हैं। ये मात्र व्युत्पत्ति अर्थ है। रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पकप्रभा, धमप्रभा, तमःप्रभा और महातम प्रभा ये सात नरक भूमियाँ हैं । अथवा धर्मा, वंशा, मेघा, अंजना, अरिष्टा, मधवी और माघवी-सात नरकों के ये सात नाम हैं। इन सातों में कम से तीस लाख, पचीस लाख, पंद्रह लाख, दश लाख, तीन लाख, पाँच कम एक लाख और पाँच-इस प्रकार कुल मिलाकर ये ८४ लाख बिल हैं। इनमें उत्पन्न हुए नारकियों के शरीर, अवगाहना, लेश्या, आयु और वेदना आदि से भेद हो जाते हैं। इसलिये इन सात नरकों की अपेक्षा नारकी सात प्रकार के माने गए हैं। जो टेढ़े हैं-कुटिल भाव को प्राप्त करते हैं, वे तियच कहलाते हैं । वे भी बादर एकेंद्रिय, सूक्ष्म एकेंद्रिय, दो इंद्रिय, तीन इंद्रिय, चार इंद्रिय, असैनीपंचें१. तस्वार्थराजवातिक, अ० ३, सू० ३६ ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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