SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नियमसार-प्राभृतम् चउदहभेदा भणिदा तेरिच्छा सुरगणा चउब्भेदा। एदेसि वित्थारं लोयविभागेसु णादव्वं ॥१७॥ माणुस्स। दुवियप्पा-मानुषाः द्विविकल्पाः। के ते ? कम्ममहीभोगभूमिसंजादा-कर्ममहीभोगभूमिसंजाताः । कर्मभूम्युद्भवा भोगभूम्युद्भवाश्च । णेरड्या सत्तविहा-नारकाः सप्तविधाः । कथं ते ? पुढविभेएण णादल्वा-पृथिवीभेदेन ज्ञातव्याः। सप्तनरकभृमिप्रकारेण ते नारका अपि सप्तधा ज्ञातव्याः । तेरिच्छा भणिदातिर्यश्चो भणिताः । कतिभेदास्ते ? चउदभेदा-चतुर्दशभेवा जीवसमासभेदैन । पुनः सुराश्च कतिधा ? सुरगणा चउन्भेदा-सुरगणाश्चतुर्भेदाः चतुर्णिकाया इति । किमेतेषामन्येऽपि प्रकारा उत इयन्त एव ? एदेसि विस्थारं-एतेषां विस्तारो बहुः वर्तते । तहि कथं ज्ञातव्यं ? लोयविभागेसु णादव्वं-लोकविभागेषु ज्ञातव्यः । लोकविभागाख्यपरमागमाद् अवबोद्धव्यः, अथवा तिलोयपण्णत्ति-त्रिलोकसार-लोकविभागादिलोकानुयोगग्रन्थेषु द्रष्टव्यः, तथाप्यत्र किञ्चित् प्रतन्यते । तद्यथा: मनोरपत्यानि मनुष्याः । ते द्विविधाः-कर्मभूमिजा भोगभूमिआश्च । पंचमहाउत्पन्न और भोगभूमि में उत्पन्न, ऐसे (दुवियप्पा) दो प्रकार के हैं । (पुढविभेएण) पृथ्वी के भेद से (णेरइया सत्तविहा णादम्बा) नारकी जीव सात प्रकार के जानना । (तेरिच्छा चउदहभेदा) तिथंच चौदह भेदरूप हैं। (सुरगणा चउब्भेदा) और देवगण चार भेदरूप हैं (भणिदा) ऐसा कहा गया है । (एदेसि वित्थारं) इन सबका विस्तार (लोयविभासेसु णादव) लोकविभाग ग्रन्थों से देखना चाहिये ।।१६-१७॥ कर्मभूमि में उत्पन्न हुए और भोगभूमि में उत्पन्न हुए ऐसे मनुष्य दो प्रकार हैं। सात नरक भूमि के प्रकार से नारकियों के सात भेद हैं। चौदह जीवसमास के भेद से तिर्यंच के चौदह भेद हैं और देवों के चार निकाय की अपेक्षा से चार भेद है। इन सबके विस्तार बहुत हैं, उन सबको लोक विभाग ग्रन्थ से या इन्हीं नाम के वाचक 'तिलोयपण्णत्ति', त्रिलोकसार', 'लोकविभाग' आदि लोकानुयोग ग्रन्थों से देखना चाहिये । फिर भी यहाँ कुछ भेद दिखलाते हैं उदाहरणार्थ-मनु को संतान को मनुष्य कहते हैं । ... वे दो प्रकार के हैं-कर्मभूमिज और भोगभूमिज । पाँच महाविदेह के
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy