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________________ नियमसार-प्राभृतम् नाम-स्वरूप-प्रतिपादनपरेण पंचमी गाथा, इति गाथापंचकेन प्रथमाधिकारे द्वितीयोऽन्तराधिकारः समासः । ____ अथ जीवतत्वस्य स्वरूपं तत्स्वभावविभावगुणपर्यायाणां च प्रतिपादनत्वेन अष्टौ सूत्राणि, पुनः नयविवक्षया जीवस्वरूपकथनमुख्यत्वेन द्वे सूत्रे, इति दशभिः सूत्रस्तृतीयेऽन्तराधिकारे समुदायपातनिका ज्ञातव्या । __अथ सूत्रस्य पूर्वार्धन सभेदं जीवस्वरूपमुत्तरार्धेन च ज्ञानोपयोगप्रकार निरूपयितुकामा सुचन्त्या चार्या: जीवो उवओगमी उवओगो गाणदंसणो होइ । णाणुवजोगो दुविहो सहावणाणं विभावणाणं ति ॥१०॥ जीबो उवओगाओ-जीवः उपयोगमयः। उबओगो गाणदंसणो होइउपयोगः ज्ञानदर्शनं भवति । णाणवओगो दुविहो सहावणाणं विभावणाणं तिज्ञानोपयोगो द्विविधः स्वभावज्ञान विभावज्ञान इति तावत् क्रियाकारकसंबन्धः । तथा तत्त्वार्थ के नाम और उनके स्वरूप को कहने वाली पांचवीं गाथा हुई । इस तरह पाँच गाथाओं द्वारा पहले अधिकार में द्वितीय अंतराधिकार समाप्त हुआ । ____अब आगे जीवतत्त्व का स्वरूप और उसके स्वभाव विभाव गुण पर्यायों को प्रतिपादन करने वाले आठ गाथा सूत्र हैं। पुनः नय विवक्षा से जोवस्वरूप कथन की मुख्यता से दो गाथा सूत्र हैं। इस प्रकार दश गाथासूत्रों द्वारा तीसरे अंतराधिकार में समुदायपातनिका जानना चाहिये । ___अब आचार्य देव गाथा के पूर्वार्ध से भेदसहित जीव का स्वरूप और गाथा के उत्तरार्ध से ज्ञानोपयोग के प्रकार निरूपित करते हुए कहते हैं __अन्वयार्थ - (जीवो उपओगमओ) जीव उपयोगमयी है। (उवओगो णाणदसणो होइ) उपयोग ज्ञान और दर्शन इन दो भेदरूप है । (सहावणाणं विहावणाणं ति) स्वभाव ज्ञान और विभाव ज्ञान इस प्रकार से (णाणुवजोगो दुविहो) ज्ञानोपयोग ये दो प्रकार है ॥१०॥ जीव का लक्षण उपयोग है। उपयोग के ज्ञान, दर्शन ये दो भेद हैं। उनमें भी ज्ञानोपयोग के स्वभावज्ञान और विभावज्ञान ये दो प्रकार हैं।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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