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________________ ५६४ नियमसार-प्राभतस् यावद्धर्मः सुमेरुश्च तावत् स्थयाविहेष हि । टोका नियमसारस्य स्याद्वादचन्द्रिकाप्यसौ ॥३३॥ इंनिधीहस्ते सनस्पोनि. प्रचहितम् । अद्यावधि दयाधर्म वर्धयद भवि भ्राम्यति ॥३४॥ जंबूद्वीपस्य संगोष्ठी राजीव उवघाटयत् । तस्याः कीतिः सुतो जीया गणतंत्रं च शासनम् ॥३५॥ श्रीकुंदकूददेवाय नमः परमोपकारिणे । यस्य प्रथितनन्थेभ्यः सत्पथोऽद्यापि दृश्यते ॥३५॥ त्रैलोक्यचक्रवतिन् ! हे शांतोश्वर ! नमोऽस्तु ते । स्वन्नामस्मतिमात्रेण, शांतिर्भवति मानसे ।।३७॥ इति श्रीनियमसारप्राभूतस्य स्याद्वादचंद्रिकाटोकायाः प्रशस्तिः पूर्णतामगात्। वर्धतां जिनशासनम् । हुई हैं, मार्गशीर्ष शुक्ला द्वितीया तिथि के दिन उस समय मैंने यह प्रशस्ति रची है । ___ जब तक जिनधर्म है, तब तक यहाँ पर (हस्तिनापुर में निर्मित) यह सुमेरु पर्वत स्थित रहे और तब तक ही यह नियमसार-प्रामृत ग्रन्थ की "स्याद्वादचन्द्रिका" टीका स्थित रहे. इंदिरा गांधी के हाथ से प्रवर्तित यह ज्ञानज्योति आज तक अहिंसा धर्म को बढ़ाती हुई पृथ्वी पर भ्रमण कर रही है । जंबूद्वीप संगोष्ठी का (सेमिनार का) राजीव गांधी ने उद्घाटन किया था । इंदिरा गांधी की कीर्ति उनका पुत्र राजीव गांधी और गणतंत्र शासन जयशील होता रहे। परमोपकारी श्री कुन्दकुन्ददेव को नमस्कार होवे कि जिनके रचे गये ग्रंथों से आज भी सच्चा पथ दिखाई दे रहा है । हे तीन लोक के चकवतिन् ! हे शांतीश्वर ! आपको मेरा नमोस्तु होवे, आपके नामस्मरण मात्र से मन में शांति हो जाती है। इस प्रकार यह नियमसार-प्राभूत की स्याद्वादचन्द्रिका टीका की प्रशस्ति पूर्ण हुई है।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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