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________________ नियमसार-प्राभृतम् इन्द्रप्रस्थान्तिके तीथें, हस्तिनागपुरे शुभे । जंबूद्वीपस्थाले रत्नत्रयावासे जिनांतिके ॥१९॥ एफैकपंचयुग्मांके, वीराब्द सप्तमीतियौ । मार्गेऽसिते कृता पूर्णा शानमत्या मया कृतिः ।।२०॥ तदा हर्षात् जना भक्त्या वाद्यश्च शिक्षिकोत्सवः । ग्रन्थमपूजयन्नेतं, भूतभक्तिहि सौख्यदा ॥२१॥ अस्यामार्षाद् विरुद्धं चेत्, प्रमादाजानतो भवेत् । तत् शोधयंतु विद्वांसो, पूर्य यथार्चमाभिमः ॥२६ कुंदकुंदोक्तचर्या मेऽप्यायिकायाः भवेदिह । कुन्दकुन्दसदृक्चर्या प्राप्नुयाच्चाग्निमे भये ॥२३॥ आजन्म मयि तिष्ठेच्च धृतोऽयं व्रतसंयमः । अमुत्र दृढसंस्कारो मार्गे उत्कीर्णवद् भवेत् ॥२४।। शासक हैं और कीर्तिशाली राजीव गांधी प्रधानमंत्री हैं। इन्द्रप्रस्थ दिल्ली के निकट हस्तिनापुर शुभ तीर्थक्षेत्र में जम्बूद्वीप स्थल पर रत्नत्रयनिलय नाम को वसतिका में भी श्री जिनेन्द्रदेव की प्रतिमा के पास में बैठकर, वीरसंबत पच्चीस सौ ग्यारह (२५११) मगसिर बदी सप्तमी तिथि के दिन मुझ ज्ञानमती ने यह कृतिरचना पूर्ण की है । उस समय संघस्य जन तथा श्रावकों ने हर्षपूर्वक भक्ति से वाद्य और पालकी उत्सव के साथ इस ग्रन्थ की पूजा की, अर्थात् लिखे हुये ग्रन्थ की पूजा करके पुनः पालकी में विराजमान कर बाजे के साथ शोभायात्रा निकाली और "सरस्वती वंदना" समारोह मनाया। इस टीका में यदि प्रमाद या अज्ञान से आगम से कुछ विरुद्ध हो, तो यदि आप विद्वान्, आर्षमार्ग के अनुकूल हैं, तो इसको शुद्ध कर लेवें । जो विद्वान् आर्ष परम्परा के नहीं हैं, सुधारक हैं, उन्हें इसके संशोधन का अधिकार नहीं है । ___इस लोक में कुन्दकुन्ददेव के द्वारा कथित आर्यिका की चर्या मेरी होवे और अगले भव में कुन्दकुन्ददेव के सदृश चर्या मुझे प्राप्त होवे । अर्थात् आगे भव में मेरी मुनिचर्या होवे । मेरा धारण किया हुआ यह व्रत और संयम आजीवन मेरे में स्थित रहे और अगले भव में मोक्ष मार्ग में पाषाण पर उकेरे हुये के समान मेरे संस्कार दृढ़ बने रहें ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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