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________________ नियमसार- प्राभृतम् य इमे आचार्याः षड्मुहूर्तादधिकमपि कालं युगपद् ग्रन्थरचनां चक्रुः । तथा च षष्ठसप्तमगुणस्थानयोः कालमंत मुंहूर्त मेवाती ग्रन्थलेखनं कुर्वतां सतामेषां सूरीणां स्वात्माभिमुख संवित्तिलक्षणं निजशुद्धात्मतत्त्वस्य सविकल्पष्यानं भवन्तासीत्, न च सातिशयाप्रमत्त योग्यं निर्विकल्पध्यानम् । तत एते महाचार्या अपि अध्यात्मस्वरूपनिजात्मतत्त्वभावनां भावयन्तः सन्त एवावसन् । अद्यश्वेऽपि चारित्रक्रियाकुशलाः केचिद् जिनमुद्राघरा मुनिवरा: संघसंचालनपरा अपि निर्विकल्पसमाधि ध्येयरूपां कृत्वा निजशुद्धात्मतत्त्वं भावयन्ति, अग्रे दुष्षमकालान्तं भावयिष्यन्त्येव । ५४४ नन आर्यिका पंचमस्थानलिन्य एवं पुनः कथं ता अध्यात्मग्रन्थपठनपाठनघोरध्यात्मभावनायां धाधिकारिण्यो भवन्ति । उक्तं च श्रीवसुनन्द्याचार्येण सिद्धंत-रहस्ताण इससे यह निश्चय होता है कि ये आचार्य छह मुहूर्त से अधिक काल तक भी एक साथ ग्रन्थ रचना करते होंगे और छठे सातवें गुणस्थान का काल अंतमुहूर्त मात्र हो है । इसलिये ग्रन्थ लिखते हुये भी इन आचार्य को अपने आत्मा अभिमुख होने से हुआ स्वसंवेदन लक्षण निज शुद्ध आत्मतत्त्व का सविकल्प ध्यान होता ही रहता था । किंतु इन्हें भी सातिशय अप्रमत्त अवस्था के योग्य निर्विकल्प ध्यान नहीं होता था, इसलिये ये महान् आचार्य भी अध्यात्मस्वरूप निज आत्मतत्त्व को ही भरते रहते थे । आज तक भी चारित्र और क्रियाओं में कुशल कोई कोई जिनमुद्राधारी मुनिराज संघ-संचालन में तत्पर रहते हुये भी निर्विकल्प समाधि को ध्येयरूप करके निज शुद्ध आत्मतत्व की भावना करते रहते हैं और आगे पंचम काल के अन्त तक भावना करते ही रहेंगे । विपडिमवीरचरियातियालजोगेषु णत्थि अहियारो । वि अज्झयणं वेसविरचाणं ॥ शंका- आर्यिकायें पंचमगुणस्थानवर्तिनी ही हैं। पुनः वे अध्यात्मग्रन्थ के पढ़ने-पढ़ाने में और अध्यात्मभावना को करने में कैसे अधिकारिणी होती हैं ? श्री वसुनंदी आचार्य ने कहा है- "देशविरतो श्रावकों को दिन प्रतिभा, वीरचर्या, त्रिकाल योग करने का तथा सिद्धान्त ग्रन्थ और रहस्य- प्रायचित्त ग्रन्थ पढ़ने का अधिकार नहीं है ।" १. वसुनंदिधावकाचार, श्लोक, ३१२ ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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