SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 520
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नियमसार-प्राभृतम् ४८९ तात्पर्यमेतत्-सिद्धान्तन्यायाध्यात्मग्रन्थेषु ज्ञानदर्शनयोः लक्षणभे सत्यप्यभिप्रायपरिज्ञानात् न परस्परविरोधः, प्रत्युत पृथक-पृथक विवक्षया विचारणाद् गुण एवं । किं बहुना ? केवलिना ज्ञानदर्शनसुखाविगुणा अनंता अचिन्त्याश्चैव । अत: णाणं अत्यंतग लोगालोगेसु वित्थडा विट्ठी। णमणिटुं सध्वं इ8 पुण जंतु तं लद्धं ॥ इति ज्ञात्वा प्रतिदिनं प्रतिक्षणं च तेषां प्रतिकृतीनां दर्शनं गुणस्मरणं पूजन स्तवनं चन्वनाविकं च विधातव्यं भवद्धिर्भवभोरुभिः । किंच-- प्रपश्यन्ति जिनं भक्त्या पूजयन्ति स्तुवन्ति छ । ते च दृश्याश्च पूज्याश्च स्तुत्याश्च भुवनत्रये ॥ एवं केवली भगवान् स्वस्य वनिगुणेन स्वात्मानं पश्यति, न च पराना तात्पर्य यह है कि सिद्धांत, न्याय और अध्यात्म ग्रन्थों के अनुसार ज्ञानदर्शन में लक्षणभेद होने पर भी अभिप्राय को समझ लेने से परस्पर में विरोध नहीं आता है, बल्कि पृथक् पृथक् विवक्षा से विचार करने पर गुण ही है । अधिक' कहने से क्या ? केवलियों के ज्ञान दर्शन सुख आदि गुण अनंत हैं और अचिन्त्य हैं । इसलिये ___ ज्ञान पदार्थों के अंत तक पहुंच चुका है, दर्शन लोक और अलोक में फैला हुआ है। इसलिये केवलज्ञान सुखस्वरूप है। केवलो का सर्व अनिष्ट नष्ट हो चुका है और जो इष्ट है, वह सब प्राप्त हो चुका है, इसलिये भी केवलज्ञान सुखस्वरूप है । ऐसा जानकर प्रतिदिन और प्रतिक्षण उन केवली भगवान् की प्रतिमाओं का दर्शन, गुणस्मरण, पूजन, स्तवन और वंदना आदि आप भवभीरु जनों को करते ही रहना चाहिये, क्योंकि जो जिनेंद्र भगवान् का भक्ति से दर्शन करते हैं, पूजा करते हैं और स्तुति करते हैं, वे इन तीनों भुवनों में स्वयं दर्शन के योग्य, पूजा के योग्य पूज्य और स्तुति के योग्य भगवान् बन जाते हैं । इस प्रकार केवली भगवान् अपने दर्शन गुण से अपनी आत्मा को देखते १. प्रवचनसार, गाथा ६१ । २. पद्मनंदिपंचविंशतिका, अध्याय ६ , श्लोक १४ ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy