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________________ नियमसार-प्राभृतम् एवं नमस्कारपूर्वक ग्रन्यप्रतिज्ञारूपेण प्रथम सूत्रम्, अस्मिन् ग्रन्थे मार्ग-मार्गफलयोराख्यानमस्तीति कथयित्या तयोर्लक्षणत्वेन द्वितीयं सूत्रम, पुनः नियमशब्दस्य व्याख्यां कृत्वा सारशब्दस्य प्रयोजनसूचनत्वेन तृतीय सूत्रम, ततो नियमतत्फलयोः स्वरूप निहानियां दस्त को निरूपयामीति प्रतिज्ञारूपेण चतुर्थ सूत्रम्, इति चतुर्भिः सूत्रः प्रथमोऽन्तराधिकारः समाप्तः । तदनन्तरं व्यवहारसम्यक्त्वस्वरूपं तस्य विषयभूताप्तागमतत्वानां लक्षणं तेषां नामानि प्रतिपादयन्तीति पञ्चभिः सूत्रद्धितीयान्तराधिकारे समुदायपातनिका । इदानी गाथायाः पूर्वान नियमस्पायवयवभुत सम्पमस्वस्मोत्तरार्धेन च तस्य विषयभूताप्तस्य लक्षणं निरूपयन्ति भगवन्तः श्रीकुन्दकुन्ददेवाः ० अत्तागमतच्चाणं सद्दहणादो हवेइ सम्मत्तं ।' ववगयअसेसढोसो सयलगुणप्पा हवे अत्तो ॥५॥ इस प्रकार नमस्कारपूर्वक ग्रन्थ की प्रतिज्ञारूप से प्रथम गाथासूत्र हुआ । इसी ग्रन्थ में मार्ग और मार्ग का फल कहा गया है, ऐसा कहकर उनका लक्षण बताते हुए दूसरा गाथासूत्र हुआ । पुनः नियम शब्द की व्याख्या करके सार शब्द का प्रयोजन सूचित करते हुए तीसरा गाथा सूत्र हुआ। इससे आगे नियम और उसके फल का लक्षण बतलाकर 'नियम को भेदरूप से कहूँगा' ऐसी प्रतिज्ञा रूप से चौथा गाथासूत्र है। इन चार गाथा सूत्रों से यह पहला अन्तराधिकार समाप्त हुआ। इसके अनंतर आगे व्यवहारसम्यक्त्व का स्वरूप और उसके विषयभूत आप्त, आगम और तत्त्वों का लक्षण, उनके नाम प्रतिपादित करेंगे। इस प्रकार पांच गाथासूत्रोंका दूसरा अन्तराधिकार है, यह समुदायपातनिका हुई। अब भगवान श्रीकुन्दकुन्ददेव गाथा के पूर्वार्ध से नियम के प्रथम अवयवभूत ऐसे सम्यक्त्व का और उत्तरार्ध से उसके विषयभूत आप्त का लक्षण कहते हैं-- अन्वयार्थ—(अत्तागमतच्चाणं) आप्त, आगम और तत्त्वों के (सद्दहणादो सम्मत्तं हवेइ) श्रद्धान से सम्यक्त्व होता है। (ववादअसेसदोसो) समस्त दोषों से रहित (सयलगुणप्पा) सकल गुणों से सहित आत्मा (अत्तो हवे) आप्त है ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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