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________________ नियमसार-प्राभृतम् अन्यत्रापि उक्तम् प्रतिमायोगिनः साधो सिद्धानागारशान्तिभिः । विधीयते क्रियाकांडं सर्वसंधैः सुभक्तितः ॥ योगिभक्ति पाद्धः प्रदक्षिणा अपि कर्तव्या भवति साधुवन्दैः । उक्तं च दीयते त्यनिर्वाणयोगिनंदीश्वरेषु हि। वद्यमानेष्वषीयानस्तत्तभक्ति प्रदक्षिणा ॥ यद्यपि एकक्षणमपि दोक्षया गरीयान् साधुः बंधो भवति तथापि अत्र प्रतियोगधारी लघीयानपि बंद्यो कथ्यते । अनेन योगस्य माहात्म्यं ज्ञात्वाद्यतनसाधुभिरपि योगाभ्यासोऽनवरतं विधातव्यः । निर्विकल्पध्यानयुक्तस्य साधोरेय मोगो मवतीति निवेदयंति आचार्यदेवाः सम्वविअप्पाभावे, अप्पाणं जो जुंजदे साह । सो जोगभत्तिजुत्तो, इदरस्स य किह हवे जोगो ।।१३८॥ अन्यत्र भी कहा है प्रतिमायोग में स्थित साधु की सर्वसंघ मिलकर भक्तिपूर्वक सिद्ध, योगी और शांति भक्ति पढ़कर किया करते हैं। योगिभक्ति को पढ़ते हुए साधुओं को प्रदक्षिणा भी करने को कहा है--चैत्यवंदना, निर्वाणक्षेत्र बंदना, योगिवंदना और नंदीश्वर क्रिया में चैत्यभक्ति, निर्वाण भक्ति, योगिभक्ति और नंदीश्वर भक्ति को पढ़ते हुए वंदना करने वालों को प्रदक्षिणा देना चाहिए । अर्थात् योगियों की वंदना के समय योगिभक्ति पढ़ते हुए सभी साधु उन योगिराज की वंदना करें। यद्यपि एक क्षण भी दीक्षा से बड़े साधु बंदनीय हैं, फिर भी यहाँ पर प्रतिमायोगधारी लघु-छोटे भी मुनि बड़ों के द्वारा वंद्य कहे गये हैं । इस कथन से योग का माहात्म्य जानकर आजकल के साधुओं को भी सतत योग का अभ्यास करते रहना चाहिए। ___निर्विकल्प ध्यान से युक्त साधु के ही योग होता है, ऐसा आचार्यदेव कहते हैं-- __ अन्वयार्थ--(जो दु साहू सव्ववियप्पाभावे अप्पाणं जुजदे) जो साधु सर्व विकल्पों के अभाव में आत्मा को लगाते हैं। (सो जोगभत्तिजुत्तो) वे योगभक्ति १. अनमारधर्मामृत, अध्याय ९ । २. अनगारवर्मामृत अ० ८, श्लोक ९२ ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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