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________________ नियमसार-प्राभृतम् तीर्थक्षेत्रे महातीर्थे पुराणपुरषाषिते । कल्याणकलिते पुण्ये, ध्यानसिद्धिः प्रजायते ॥ केवलिजिनशासने कदा फेनोपविष्टं सामायिकमिति चेदुच्यते मूलाघारे बावोसं तित्थयरा सामायियसंजमं उदिसति । छेनुवठावणिय पुण भयवं उसहो य वोरो य॥ य ऐदंयुगोना मुनयो मूलाचारविहितव्यवहारसामायिकं द्वात्रिंशदोषविरहितं कुर्वति त एवास्मिन् भवेऽन्यस्मिन् भवे था नियमेन निश्चयसामायिकनामधेयां परमसमाधि प्राप्नुवन्त्येष इति ज्ञात्वा पडिलिहियअंजलिफरो उबछुसो उठिऊण एयमणो। अध्याखित्तो बुतो करेवि सामाइयं भिक्खू ॥ स्थान ध्यान, अध्ययन के लिए उचित नहीं हैं। और की जो स्थान क्षोभ, मोह या विकार के लिए कारण होते हैं, ध्यान विध्वंस के डर से मुनियों को वे स्थान छोड देने चाहिये। तोर्थ क्षेत्र पर पुराण पुरुषों के आश्रित महातीर्थ में पंचकल्याण से पवित्र पुण्य क्षेत्र में ध्यान की सिद्धि मानी गयी है । शंका केवली जिन के शासन में कब किसने यह सामायिक संयम समाधान-बाईस तीर्थंकरों ने सामायिक संयम का ही उपदेश दिया है, किन्तु भगवान ऋषभदेव और भगवान् महावीर इन दोनों तीर्थंकरों ने छेदोपस्थापना संयम का भी उपदेश दिया है। अर्थात् सामायिक संयम का उपदेश तो चौबीसों तीर्थंकरों ने किया है। जो आज कल के मुनि मूलाचार में कथित व्यवहार सामायिक क्रिया को बत्तीस दोषरहित करते हैं, वे ही इस भव में अथवा अन्य भव में नियम से निश्चय सामायिक नाम की परमसमाधि को प्राप्त कर लेते हैं । ऐसा जानकर पिच्छिका सहित अंजलि जोड़ कर, उपयुक्त हुये, उठकर, एकाग्रमना होकर, मन को विक्षेपरहित करके मुनि सामायिक करते हैं । १. ज्ञानार्णव, अध्याय २८! ३. भूलाचार, अ०७, गाथा ३९ । २. मूलाचार, १० ७, गाथा ३६ ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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