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________________ विमानानृत्य इदं प्रत्याख्यानं सुखेन कस्य भवेदिति प्रतिपादयन्ति सूरयः णिक्कसायरस दंतस्स सूरस्स ववसायिणो । संसारभयभीदस्स पच्चक्खाणं सुहं हवे ॥१०५॥ २९७ स्याद्वावचन्द्रिका ---- णिक्कसायरस - निर्गता अनंतानुबंध्यादिकषायाः यस्मादसौ निष्कषायः, संज्वलनमात्रकषायाश्रितो वा तस्य । दंतस्स-पंचेन्द्रियनिरोधयतेन जितेन्द्रियस्य । सूरस्स - परीषहोपसर्गप्रसंगे धैर्यगुणोपेतस्य शूरसागुणयुक्तस्य । ववसायिणो-मूलोत्तरगुणेषूद्यमशीलस्य । संसारभयभीदस्स - संसारस्य गर्भवासप्रभृत्यनंतदुःखानि तेभ्योभयभीतस्य, अथवा संसारे इहलोका विसप्तभयाः, अनेकशः भया वा तेभ्यो भीतस्य तस्य जातरूपस्य मुनिवरस्य । सुहं पच्चक्खाणं हवे - सुखपूर्वकं प्रत्याख्यानं भवेत् । इतो विस्तर:- मूलाचारग्रन्थे - प्रत्याख्यानस्य " अणागवमविषंत" इत्यादिरूपेण दशभेदाः संति । यह प्रत्याख्यान सुख से किनके होता है ? माचार्यदेव ऐसा प्रतिपादन करते हैं अन्वयार्थ - ( णिक्कसायरस दंतरस सूरस्स ववसायिणो संसारभयभीदस्स) कषायरहित, जितेन्द्रिय, शूर, उद्यमशील और संसार से भयभीत मुनि के ( पच्चक्खाणं सुहं हवे ) प्रत्याख्यान सुख पूर्वक होता है । टीका --- जिनके अनन्तानुबन्धी आदि कषायें निकल गई हैं । वे निष्कषाय मुनि हैं अथवा जो संज्वलन मात्र कषाय के आश्रित हैं वे निष्कषाय मुनि हैं । जो पञ्चेन्द्रिय निरोध व्रत से जितेन्द्रिय हैं, परीषह और उपसर्ग के प्रसंग में धैर्य गुण सहित हैं अर्थात् शूरता गुण से युक्त हैं, मूलगुण और उत्तरगुणों में उद्यमशील हैं, और जो संसार के गर्भवास आदि अनन्त दुःखों से भयभीत हैं, अथवा संसार में इस लोक परलोक आदि सात भय हैं, या और अनेक भय हैं जो उनसे भयभीत हैं, उन मुनिराज के सुखपूर्वक प्रत्याख्यान होता है । ૨૮ इसी का विस्तार कहते हैं मूलाचार ग्रन्थ में प्रत्याख्यान के "अनागत अतिक्रांत" आदि रूप से दश
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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