SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अथ निश्चयप्रत्याख्यानोऽधिकारः नमोऽस्तु व्यवहारनिश्चयप्रत्याख्यानपरिणतत्रिसंख्योननयकोटिमुनीश्वरेभ्यः । अथ व्यवहारप्रत्याख्यानबलसाध्य-निश्चयप्रत्याख्यानाख्यः षष्ठोऽधिकारः प्रारभ्यते । तत्र द्वादशगाथासूत्रेषु "मोतूण सयलजप्पं" इत्यादिगाथासूत्रमादि कृस्वा चतुभिर्गाथासूत्रैनिश्चयप्रत्याख्यानस्य सोहंशब्दस्य च लक्षणं कथ्यते । पुनः षड्भिर्गाथासूत्रैर्ममत्वं त्याजयित्वा एकत्वस्य साम्यस्य च भावना वणिता भविष्यति । तदनु द्वाभ्यां सूत्राभ्यां प्रत्याख्यातस्य मुनैः स्वरूप उपसंहारश्चेति त्रिभिरन्तराधिकारैः समुदायपातनिका सूचिता भवति । अधुना श्रीकुन्दकुन्दाचार्या निश्चयप्रत्याख्यानस्वरूपमाख्यातिमोत्तुग सयलजप्पमणागयसुहमसुहवारणं किच्चा। अप्पाणं जो झायदि पच्चक्खाणं हवे तस्स ॥९५।। व्यवहार निश्चय प्रत्याख्यान से परिणत तीन कम नव करोड़ मुनीश्वरों को नमोऽस्तु होवे। अब व्यवहार प्रत्याख्यान के बल से साध्य निश्चय प्रत्याख्यान नाम का छठा अधिकार प्रारंभ किया जाता है । उसमें बारह गाथा सूत्रों में "मोत्तूण सयलजप्पं" इत्यादि गाथासूत्र को आदि करके चार गाथा-सूत्रों से निश्चय प्रत्याख्यान का और "सोह" शब्द का लक्षण कहेंगे । पुनः छह गाथासूत्रों द्वारा ममत्व से छुड़ाकर एकत्व और साम्य की भावना वर्णित की जायगी। इसके बाद दो गाथासूत्रों से प्रत्याख्यान करनेवाले मुनि का स्वरूप और इस अधिकार का उपसंहार होगा। इस प्रकार इन तीन अंतराधिकारों से यह समुदायपातनिका सूचित की गई है। अब श्री कुन्दकुन्दाचार्य 'निश्चय-प्रत्याख्यान का स्वरूप कहते हैं अन्वयार्थ-(सयलजप्पं मोत्तूण) सकल जल्प को छोड़कर (अणागयसुहमसुहवारणं किच्चा) अनागत शुभ-अशुभ भावों का निवारण करके (जो अप्पाणं झायदि) जो आत्मा को ध्याते हैं : (तस्स पच्च क्खाणं हवे) उनके प्रत्याख्यान होता है।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy