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________________ २०४ नियमसार-प्राभूतम् तेष यदा निविकल्पसामायिकसंयमाधिरूढत्वेनानभ्यस्तविकल्पत्वात् प्रमाति तदा केवलकल्याणमात्रार्थिनः कुण्डलवलयांगलीयकाविपरिग्रहः किल श्रेयान् न पुनः सर्वथा कल्याणलाभ एवेति संप्रधायें विकल्पैनात्मानमुपस्थापयन् छेदोपस्थापको भवति ।। ___ यदीदं भवरूपं व्यवहारचारित्रं हेयं तहि कथमस्थ उपदेशः क्रियते ? नैतत् सुष्ठ; कस्मात् ? निश्चयचारित्रस्य विकल्पत्वात् कारणत्वाच्च । अत्र व्याख्यायां कथितमेव । तथैव चोक्तं पञ्चास्तिकायग्रन्थेऽपि श्रीमदव्याख्याकारैः-- "व्यवहारनयमाश्रित्यानुगम्यमानो मोक्षमार्गः निश्चयमोक्षस्य साधनभावमापद्यते'।" एवमेव जयसेनाचार्येणापि कथितमास्ते-- "व्यवहारो मोक्षमार्गो निश्चयरत्नत्रयस्योपादेयभूतस्य कारणभूतत्वादुपादेयः परंपरया में स्थित होने पर भेद का अभ्यास न होने से उनमें प्रमाद को प्राप्त होता है, तब जैसे केवल सुवर्णमात्र के इच्छुक को कुण्डल, कड़ा, अंगूठी आदि का भी ग्रहण करना श्रेयस्कर है, न कि सर्वथा सुवर्ण का मिलना ही, ऐसा समझकर वह मुनि भेदरूप चारित्र द्वारा आत्मा में उपस्थित होता हुआ छेदोपस्थापक होता है । अर्थात् जैसे कोई सिर्फ सुवर्ण चाहता है और उसके न मिल सकने पर सुवर्ण के ही कुण्डल कड़े अंगूठी आदि ले लेता है, उन्हें छोड़ता नहीं है, उसी प्रकार मुनि सामायिक नाम के एक अभेद संयम में ही रहना चाहते हैं, किंतु जब उसमें अंतर्मुहूर्त से अधिक नहीं टिक पाते हैं, तब वे अट्ठाईस मूल गुणों के भेद से छेदोपस्थापना नामक चारित्र को ग्रहण कर लेते हैं। शंका--यदि यह भेदरूप चारित्र हेय है, तो इसका उपदेश क्यों किया है ? समाधान-यह कहना ठीक नहीं है। शंका-क्यों ? समाधान—क्योंकि यह निश्चय चारित्र का भेदरूप है और निश्चयचारित्र का कारण है। इस व्याख्या में श्रीमान् व्याख्याकार अमृतचंद्रसूरि ने यही तो कहा है और इन्हीं आचार्य ने पंचास्तिकाय ग्रन्थ की टीका में भी कहा हैव्यवहारनय का आश्रय लेकर होने वाला मोक्षमार्ग निश्चयमोक्षमार्ग का साधन है। यही बात श्री जयसेनाचार्य ने भी कही है व्यवहार मोक्षमार्ग निश्चयरत्नत्रय, जो कि उपादेय भूत है, उसके लिए १. पञ्चास्तिकायगाथा १६०, टीका ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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