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________________ नियमसार-प्राभृतम् कदकारिदाणुमोदणरहिदं-कृतकारितानुमोदनरहितं मनोकाक्कायानां प्रत्येक कृतकारितानमोवनैः कृत्वा नव विकल्पा भवंति, तैः रहितम् । तह पासुगं पसत्थं चतथा प्रासुकं प्रशस्तं च, हरितकायजीवादिरहितं योनिभूतबीजादिरहितं वा प्रासुकम्, अनिष्टानुपसेव्यादिरहितं प्रशस्त छ । किमेतत ? भत्तं-भक्तं भोजनम् । पुनः कीदृशम् ? परेण दिणं-परेण सप्तगुणसमाहितेन श्रावकेण वस्तम्, प्रतिग्रहोच्चस्थानपादप्रक्षालनाचनप्रणाममनोवाक्कायशुद्धिभिक्षाशुद्धिनामधेयाः नवधा भक्तीः कृत्वा विधिवत् प्रदत्तं अयाचितं च । एतादृशो भोजनस्य समभुत्ती एषणासमिदी-समभुक्तिः समतापरिणामेन भुक्तिः सा एषणासमितिः भवति । कस्य ? साधोरिति । तद्यथा-उद्गमोत्पावनैषणादिषट्चत्वारिंशद्दोषैः रहितं चतुर्वशमलदोषविप्रमुक्तं द्वात्रिंशदन्तरायविवजितं नवकोटिविशुद्धञ्च यमाहारं योग्यश्रावण श्राविकाभिर्वा भक्त्या प्रदरं, सदपि मुनिः असातोनएननितनभूमाप्रशमनार्थ वैयावृत्त्या (तह पासुगं पसत्यं च परेण दिण्णं भत्तं) तथा प्रासुक, प्रशस्त और पर के द्वारा दिया गया भोजन (समभुत्ती) समभावों से लेना (एसणासमिदी) एषणा समिति टीका-- मन, वचन, काय को कृत कारित अनुमोदना से गुणा करने पर नवभेद होते हैं । इन नव विकल्पों से रहित, प्रासुक-हरित काय जीवादि से रहित अथवा योनिभूत बीज आदि से रहित भोजन प्रासुक है, तथा अनिष्ट और अनुपसेव्य आदि से रहित भोजन प्रशस्त कहलाता है। यह भोजन सात गुणों से सहित और नवधा भक्ति करने वाले श्रावक के द्वारा दिया गया हो, अर्थात् याचना से रहित हो, ऐसे भोजन को समता भाव रो लेनेवाले साधु के एषणासमिति होती है । नवधा भक्ति में-१. पड़गाहन करना, २. उच्चस्थान पर बिठलाना, ३. पादप्रक्षालन करना, ४, पूजन करना, ५. प्रणाम करना, ६. मन शुद्धि, ७. वचन शुद्धि, ८. कायशुद्धि और ९. भोजन शुद्धि। आहार के समय की ये क्रियायें नवधा भक्ति कहलाती हैं। . उदगम के १६, उत्पादन के १६ और एषणा के १० ऐसे ४२, तथा प्रमाण, अंगार, धूम और संयोजना-इन ४६ दोषों से रहित, चौदह मल दोषों से रहित, बत्तीस अन्तरायों से वर्जित और नवकोटि से विशुद्ध जो आहार है, वह भी श्रावक अथवा श्राविकाओं द्वारा भक्ति से दिया गया हो, ऐसे आहार को भी
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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