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________________ नियमसार-प्राभृतम् सम्मतस्स णिमित्तं जिणसुत्तं तस्स जाणया पुरिसा-सम्यक्त्वस्य निमित्तं बहिरङ्गकारणं जिनसूत्रं तस्य जिनसूत्रस्य ज्ञायकाः पुरुषाः अपि । पुनः अंतरंगकारणं किं ? दंसणमोहस्स खयपहुदी अंतरहेऊ भणिदा-दर्शनमोह क्षयप्रभृतयः अन्तर्हेतयों भणिताः इति । इतो विस्तरः--निमित्तकारणं द्विविधम्-बहिरंगनिमित्तम् अन्तरंगनिमित्तं च । सम्यक्त्वस्योत्पत्तये जिनसूत्रं तस्य ज्ञातारः आचार्योपाध्यायसाधवश्च बहिरंगकारणरूपेण कथ्यन्ते । अनंतानुबंधिचतुष्क मिथ्यात्वं सभ्यग्मिथ्यात्वं सम्यक्त्वं चेति सप्तप्रकृतीनामुपशमः क्षयः क्षयोपशमो वा अन्तरंगकारणत्वेन विवक्ष्यन्ते । महासिद्धान्तग्रन्थे बरखण्डागमे सम्यक्त्वस्योत्पत्तेः बहिरंगकारणस्य विशवविवेचनं दृश्यते--तत्र जातिस्मरणवेदनानुभवजिनबिबदर्शनजिनममिदर्शनदेवद्धिदर्शनेण्वन्यतमकारणे सत्येव सम्यग्दर्शनमुत्पद्यते, न च कारणमन्तरेण। कथमेतत् ज्ञायते ? तत्रैव धवलाटोकया ज्ञायते । तद्यथावाले पुरुष (सम्मत्तस्स णिमित्तं) सम्यक्त्व के निमित्त हैं । (दसणमोहस्स खयपहुदी) दर्शन मोहनीय का क्षय, उपशम आदि (अन्तरहेक भणिदा) अन्तरंग हेतु कहे हैं ॥५३॥ टीका-सम्यक्त्व का निमित्त-बहिरंग कारण जिनसूत्र है और उनके ज्ञाता पुरुष भी हैं। पुनः अन्तरंग कारण क्या हैं ? दर्शन मोहनीय का क्षय आदि होना अंतरंग कारण है। इसी का विस्तार कहते हैं -निमित्त कारण दो प्रकार के हैं-बहिरंग निमित्त कारण और अंतरंग निमित्त कारण । सम्यक्त्व की उत्पत्ति के लिए जिनसूत्र और उसके ज्ञाता आचार्य, उपाध्याय, साधु बहिरंग कारण रूप से कहे गये हैं । अनंतानुबंधी चतुष्क, मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व इन सात प्रकृतियों का उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशम ये अंतरंग कारणरूप से विवक्षित है। महान् सिद्धांत ग्रन्थ षट्खण्डागम में सम्यक्व की उत्पत्ति के बहिरंग कारण का विशद विवेचन दिख रहा है उसमें जातिस्मरण, बेदना अनुभव, जिनबिबदर्शन, जिनमहिमदर्शन और देवऋद्धिदर्शन इनमें से कोई एक कारण के होने पर ही सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है, न कि कारण के बिना ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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