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________________ नियमसार- प्राभृतम् अत्र नियमसारप्राभूतग्रन्थे पूर्वोक्तक्रमेण दशगाथाभि: पुद् गलद्रव्यव्याख्यानं कृतम्, चतुर्गाथाभिः धर्मादिचतुर्दव्यध्याख्यानं कृतम्, चतुर्गायाभिश्च द्रव्यस्यास्तिकायप्रवेशगणनादिविशेषव्याख्यानमित्यष्टावशगाथाभिः त्रयोऽन्तराधिकाराः गताः । १२० इति श्रीभगवत्कुन्दकुन्दाचार्यप्रणीत नियमसारप्राभूतप्रन्ये ज्ञानमस्यायिकाकृतस्याद्वादefiantaraटीकायां यवहारमोक्षमार्गमहाधिकारमध्ये सम्यक्त्वप्ररूपणाया अन्तर्गतेऽजोवाधिकारनामा द्वितीयोऽधिकारः समाप्तः । इस नियमसार प्राभृत ग्रन्थ में पूर्वोक्त क्रम से दस गाथाओं द्वारा पुद्गल द्रव्य का व्याख्यान हुआ, चार गाथाओं में धर्मादि चार द्रव्यों का व्याख्यान किया, पुनः चार गाथाओं द्वारा द्रव्य के अस्तिकाय प्रदेशों की गणना आदि विशेष का व्याख्यान किया है । इस प्रकार इन अठारह गाथाओं में तीन अन्तराधिकार पूर्ण हुए । इस प्रकार भगवान् श्रीकुंदकुंदाचार्य प्रणीत नियमसार - प्राभृत ग्रन्थ में आर्यिका ज्ञानमती कृत स्याद्वादचंद्रिका नाम की टीका में व्यवहार मोक्षमार्ग महाधिकार के मध्य, सम्यक्त्व प्ररूपणा के अंतर्गत, अजीवाधिकार नाम का दूसरा अधिकार समाप्त हुआ ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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