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________________ नियमसार-प्राभृतम् १०७ कालद्रव्यस्यासाधारणं लक्षणं वर्तते । ननु जीवपुद्गलयोः स्वभावविभावगुणपर्यायाः प्रोक्ताः, पुनः अन्येषां द्रव्याणां कोदशाः गुणपर्यायाः ? उच्यते, धम्मादिचउण्णाणं सहावगुणपज्जया होंति-धर्मादिचतुर्णा स्वभावगुणपर्यायाः भवन्ति । धर्माधर्माकाशकालद्रव्याणां विभावगुणपर्यायाः न सन्ति इति अर्थापत्तेः सिद्धम् । इतो बिस्तरः-जीवादिषड्द्र व्याणि उत्पावव्ययध्रौव्ययुक्तान्येव यतः सन्ति, अतस्ते स्वयं परिणमनशीला एब, तथापि एषां परिवर्तने कालद्रव्यं सहकारिकारणं भवति । किश्च, नहि स्वतोऽसती शक्तिः कतु मन्येन पार्यते । ननु शुद्धजीवेषु धर्मादिद्रव्येषु कथं उत्पादव्ययो, तथैव अवस्थानात्, इति चेन्न, शुद्धसत्तालक्षणं, अगुरुलघुत्वगुणषड्ढानिवृद्धिरूपेण शुद्धोत्पादव्ययलक्षणं सूक्ष्मपरिणमनं शुद्धसिद्धजीवेषु पुद्गल शंका--जीव पुद्गल को स्वभाव-विभाव गुण-पर्यायें कही गई हैं, पुनः शेष बचे अन्य द्रव्यों की गुण-पर्यायें कैसी हैं ? समाधान-धर्म, अधर्म, आकाश और काल-इन चार द्रव्यों की स्वभावगुण-पर्यायें होती हैं । इस कथन से यह सिद्ध हो जाता है कि इनमें विभाव-गुणपर्याय नहीं हैं। इसी का स्पष्टीकरण करते हैं--- जीव आदि छहों द्रव्य उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य से युक्त ही हैं, क्योंकि वे सत्रूप हैं । इसलिये वे स्वयं परिणमनशील ही हैं, फिर भी इनके परिवर्तत में काल द्रव्य सहकारी कारण होता है । क्योंकि स्वतः जिसमें जो शक्ति नहीं है, वह अन्य के द्वारा करना शक्य नहीं है। शंका--शुद्ध जीवों में और धर्म आदि चार द्रव्यों में उत्पाद-व्यय कैसे होगा, क्योंकि ये जैसे के तैसे स्थित हैं ? ____ समाधान---ऐसा नहीं कहना, शुद्ध सत्तालक्षण, अगुरु-लघुगुण की षड् हानिवृद्धिरूप से शुद्ध उत्पादव्यय लक्षण सूक्ष्मपरिणमन शुद्ध सिद्ध जीवों में है, पुद्गल परमाणुओं में है और धर्मादि द्रव्यों में भी है ही है। यहाँ यह अभिप्राय है कि जैसे संसारी जीवों में मतिज्ञानादि विभावगण और नर नारकादि विभाव-पर्याय हैं, उसी प्रकार पुद्गल स्कंधों में वर्ण से
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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