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________________ नियमसार-प्राभृतम् अस्मिन् पौद्गलिके शरीरेऽतोव निःस्पृहः सन् परोषहोपसर्गादींश्च सहमानः शुद्धबुद्धनिजात्मतत्त्वश्रद्धानज्ञानानुचरणरूपाभेदरत्नत्रयलक्षणे निर्विकल्पसमाधौ स्थित्वा शरीराद् भिन्न स्वशुद्धात्मानमनुभवति, तदैव तस्मिन् आत्मनि तन्मयो भूत्वा मोहं समलं निर्मन्य परमसम्वी भवतीति ज्ञात्वा श्रद्धानस्य फलं व्रताचरणं विधासन्यमेव त्वया चेत् सुखैषिणेति ॥२९॥ ___एवं पुद्गलद्रव्यभेदसूचकत्वेन एक सूत्रम्, सोबाहरणं स्कंधस्य षड्-भेदकथनमुख्यत्वेन चतुःसूत्राणि, सभेवं परमाणुलक्षणप्रतिपादनपरं एकं सूत्रम्, परमाणोः विशेषलक्षणपूर्वकत्वेन एक सूत्रम्, पुनः पुद्गलस्य स्वभावविभावगुणप्रतिपादनपरत्वेन एक सूत्रम्, तदनु स्वभावविभावपर्यायकथनप्रधानत्वेन एक सूत्रम्, तत्पश्चात् नयविवक्षया पुद्गलद्रव्यकथनरूपेण चैकं सूत्रम् इति दशभिः सूत्रैः पुद्गलतत्वप्रतिपादकोऽयं प्रथमोऽन्तराधिकारः समाप्तः । अत ऊर्ध्व शेषचतुव्याणि कश्यन्ते चतुभिः सूत्रेः। इस पौद्गलिक शरीर में अतीय निःस्पृह होता हुआ, परीषह उपसर्ग आदि को भी सहता हुआ, शुद्ध बुद्ध निज आत्मतत्त्व का श्रद्धान, उसी का ज्ञान और उसी में आचरण रूप अभेदरत्नत्रय लक्षण निर्विकल्प समाधि में स्थित होकर शरीर से भिन्न अपनी शुद्ध आत्मा का अनुभव करता है। तभी उस आत्मा में तन्मय होकर मोह को जड़मूल से उखाड़ कर परमसुखी हो जाता है । ऐसा जानकर यदि तुम्हें सुख की इच्छा है तो श्रद्धान का फल जो व्रतों का आचरण है, उसे ही करना चाहिये। इस प्रकार पुद्गलद्रव्य के भेद को सूचित करते हुये एक गाथा हुई। उदाहरण सहित स्कंध के छह भेद को कहने की मुख्यता से चार गाथायें हुई। परमाणु का लक्षण और भेद को बतलाते हुये एक गाथा हुई। इसके बाद परमाणु का विशेष लक्षण बतलाते हुये एक गाथा हुई । अनंतर पुद्गल के स्वभाव-विभाव गुणों को प्रतिपादित करते हुये एक गाथा हुई । इसके बाद स्वभाव-विभाव पर्यायों को बतलाते हुये एक गाथा हुई। इसके पश्चात् नय-विवक्षा से पुद्गल द्रव्य का कथन करते हुये एक गाथा हुई। इस तरह इन दश गाथाओं से पुद्गल द्रव्य को बतलाने वाला यह प्रथम अन्तराधिकार पूर्ण हुआ। इसके आगे चार गाथाओं द्वारा शेष चार द्रव्यों का कथन करेंगे।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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