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________________ नियमसार-प्रामृतम् ... तात्पर्यमेतत्-अयं जीवोऽनादिकालात् पुद्गलद्रव्येण सह मैत्री कृत्या विजातीयसंसर्येण संसारे पर्यटन्नास्ते, यदा तु निजसम्यक्त्वगुणबलेन अनन्सगुणसं• पन्नं निजात्मानं विजानीयात् तदा परद्रव्येषु अप्रीति कृत्वा देहादिष्वात्मधीः एव संसारस्य मूलकारणमिति च ज्ञात्वा यथाशक्ति व्रताचरणं विधातव्यम् इति ॥२०॥ पुदगलस्य भेदद्वयं प्रतिपाद्य जगति दृश्यरूपानु स्कंधभेयान् प्रतिपादयन्ति भगवन्तः अइथूलथूल थूलं थूलसुहुमं च सुहुमथूलं च । सुहुमं अइसुहुमं इदि धरादियं होदि छन्भेयं ।।२१॥ भूपत्वदमादीया भणिदा अइथुलथूलमिदि खंधा । थूला इदि विण्णेया सप्पीजलतेलमादीया ॥२२॥ छायातवमादीया थलेदरखंधमिदि वियाणाहि । सुहमथलेदि भणिया खंधा चउरक्खाविसया य ॥२३॥ होती रहती है, इसलिए परमाणुओं में पुद्गलपना अविरुद्ध ही है । आगे गाथा नं० २९ में स्वयं आ० कुन्दकुन्ददेव मुख्यरूप से परमाणु को ही 'पुद्गल' कहेंगे । यहाँ तात्पर्य यह निकला कि यह जीव अनादिकाल से पुद्गल द्रव्य के साथ भैत्री करके, इस विजातीय पुद्गल द्रव्य के संसर्ग से, संसार में परिभ्रमण कर रहा है । जब यह आत्मा अपने सम्यक्त्व गुण के बल से अनंतगुण-संपन्न अपनी आत्मा को जान लेवे, तब पर-द्रव्यों से प्रीति हटाकर, और "शरीर आदि में अपनत्व बुद्धि ही संसार का मूलकारण है" ऐसा जानकर, अपनो शक्ति के अनुसार उसे व्रतों का आचरण करना चाहिये ।।२०।। भगवान् श्रीकुन्दकुन्द देव पुद्गल के दो भेद प्रतिपादित कर जगत में दृश्यरूप जो स्कंध हैं, उनके भेदों का प्रतिपादन करते हैं.... अन्वयार्थ-(अइथूलथूल थूलं थूलसुहुमं च सुहमथूलं च सुहुमं अइसुहुम) अतिस्थूल-स्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, सूक्ष्म और अतिसूक्ष्म (इदि) इस
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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