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________________ अजीवाधिकारः ___ अतिस्थूलस्थूलपृथ्वोकायिफरत्नमयपरिणतान् चतुःशताष्टपंचाशवकृत्रिमानाद्यन्तजिनालयान् त्रिकरणशुद्धया त्रिसंध्यं प्रणमाम्यहम् ॥ अथ तावत् सम्यक्त्वस्य विषयभूताजीवद्रव्यपञ्चकस्य प्रतिपादनपरोऽजीवाख्यो द्वितीयोऽधिकारः प्रारभ्यते । तत्राष्टदशसूत्रेषु 'अणुखंघवियप्पेण' इत्याविगाथास्त्रमादि कृत्वा दशसूत्राणि पुद्गलद्रव्यव्याख्यानमुख्यत्वेन, तदनंतरं 'गमणणिमित्तं' इत्यादिसूत्रमादिं कृत्वा चतुःसूत्राणि धर्माधर्माकाशकालद्रव्यप्रतिपादनप्रधानत्वेन, तत्पश्चात् 'एदे छद्दव्याणि' इत्याविगाथासूत्रमादिं कृत्वा द्रव्याणामस्तिकायत्वप्रवेशप्रमाणत्वमूर्तामूर्तत्वख्यापनमुख्यत्वेन सूत्रयमिति त्रिभिरन्तराधिकारैः समुदायपातनिका । अधुना पुद्गलतत्त्वस्य भेदनभेदान् प्रतिपावन्तो वन्त्याचा: अणुखंधवियप्पेण दु पोग्गलदव्वं हवेइ दुवियप्पं । खंधा हु छप्पयारा परमाणु चेव दुवियप्पो ॥२०॥ अजीव-अधिकार अब सम्यक्त्व के विषयभूत जो पांच अजीव द्रव्य हैं, उनको प्रतिपादित करने वाला अजीव नाम का दूसरा अधिकार प्रारंभ हो रहा है। उसमें अठारह गाथाओ में 'अणुखंधवियप्पण' इत्यादि गाथासूत्र को आदि में करके दस गाथाएँ पुद्गल द्रव्य के व्याख्यान की मुख्यता से हैं। इसके बाद 'गमणणिमित्तं' इत्यादि सूत्र को आदि करके चार गाथाओं में धर्म, अधर्म, आकाश और काल द्रव्य के प्रतिपादन को प्रधानता है । इसके बाद "एदे छद्दब्बाणि'' इत्यादि गाथासूत्र को आदि करके द्रव्यों का अस्तिकाय, प्रदेशों का प्रमाण और मूर्त-अमूर्त के कथन की मुख्यता से दो गाथायें हैं। इस प्रकार तीन अधिकारों से यह समुदाय पात निका होगी। अब पुद्गल तत्त्व के भेद-प्रभेदों का प्रतिपादन करते हुये आचार्य कहते हैं अन्वयार्थ-(अणुसंधवियप्पेण दु) अणु और स्कंध के भेद से (पोग्गलदव्वं दुवियप्पं) पुद्गलद्रव्य दो प्रकार का (हवेइ) है। (हु खंधा छप्पयारा) निश्चय से स्कंध छह प्रकार का है (चव परमाणू दुवियप्पो) और परमाणु के दो भेद हैं ॥२०॥
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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