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________________ प्रया के लोग अपनी-अपनी मर्यादाबों का उल्लंघन नहीं कर सकते । इस से राजा का धर्म, अर्थ और काम इन तीन पुरुषार्थों को प्रासि होती है (५,६०)। ३. आर्थिक कर्तव्य- आर्थिक दृष्टि से प्रजा को सम्पन्न बनाना भी राजा का कर्तव्य है। जीवन को सुखमय बनाने के लिए अर्थ की परम आवश्यकता है। क्योंकि सब प्रयोजनों की सिद्धि अर्थ से ही होता है। २:३॥ की ऐसी व्यस्था करनी चाहिए, जिस से प्रत्येक व्यक्ति को जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध हो सकें। इस के लिए सोमदेव ने राजा को वार्ता की उन्नति करने का आदेश दिया है। और इस को समृद्धि में ही समस्त समृद्धियां निहित बतलायी है (८, २)। लोक में कृषि आदि की समचित ध्यवस्था करने वाला राजा प्रजा को सुखी बनाता है तथा स्वयं भी अभिलषित सुखों को प्राप्त करता है। आचार्य सोमदेव प्रजा को स्वावलम्बी बनाने पर अधिक बल देते है। वे कृषि कर्म, पशु-पालन, एवं कृषि के साधनों की उन्नति को समस्त सुखों को आधारशिला मानते हैं। उन का कथन है कि वह गृहस्थ निश्चय पूर्वक सुखी है जो कृषिकर्म, गोपालन में प्रवृत्त हैं तथा शाक आदि उत्पन्न करता है और जिस का स्वयं का कुआं प्रजा को आर्थिक स्थिति को ठीक रखने के लिए राजा को प्रजा पर अधिक कर नहीं लगाने चाहिए और न उस से अन्याय पूर्वक धन ही लेना चाहिए (१६,२३)। यदि राजा अनुचित रीति से प्रजा से धन लेता है तो ऐसा करने से उस का राज्य नष्ट हो जाता है। व्यापार एवं घाणिज्य के विकास के लिए उसे समुचित नियमों की व्यवस्था करनी चाहिए और व्यापारियों की सुरक्षा का भी प्रबन्ध करना चाहिए। सोमदेव का कथन है कि जिस देश में तुला और मान की उचित व्यवस्था नहीं होती और व्यापारियों के माल पर अधिक कर लगाया जाता है वहां पर व्यापारी अपना माल देखने नहीं आते (८, ११ तथा १३)। इसी प्रकार के अन्य व्यापार सम्बन्धो नियमों को और भी सोमदेव ने संकेत किया है। एक स्थान पर वे लिखते हैं कि यदि राजा प्रयोजनार्थियों का प्रयोजन सिद्ध न कर सके तो उसे उन की भेंट स्वीकार नहीं. करनी चाहिए, अपितु उसे वापस लौटा देना चाहिए, क्योंकि प्रत्युपकार न किये जाने वाले की भेंट स्वीकार करने से लोक में निन्दा और इसी के अतिरिक्त कोई लाभ नहीं , होता (१७, ५३)। ४. प्रशासकीय कर्तव्य-देश को शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से पलाने के लिए राजा को सुयोग्य सजकर्मचारियों की नियुक्ति करनी चाहिए, अकेला राजा शासम के भार को संभालने में सर्वथा असमर्थ है इसलिए उसे राजनीतिशास्त्र के शाता एवं व्यवहार कुशल मन्त्रियों की नियुक्ति करनी चाहिए तथा उन के सत्परामर्श को मानना चाहिए । मूर्ख और दुराग्रहो राजा से राष्ट्र की हानि होती है। क्योंकि आस (हितैषी) पुरुषों की परम हितकारक बात की भी अबहेलना करता है जिस के कारण राष्ट्र की श्रीवृद्धि में बाधा पड़ती है। राज्य में शान्ति एवं व्यवस्था की स्थापना के राजा
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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