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________________ · · की अवहेलना कर के पापकर्मों में प्रवृत्ति करता है उसे दुष्ट कहते हैं (५, ४१) । दुष्ट राजा से प्रजा का विनाश ही होता है। उसे छोड़कर दूसरा कोई उपद्रव नहीं हो सकता (५,४० ) । इस के साथ ही मूर्खता, अनाचार और कायरता भी राजा के भीषण दोषों के अन्तर्गत आते हैं । इस सम्बन्ध में आचार्य सोमदेव दिखते हैं कि "जो पुरुष उक्त दोषों से युक्त है वह पागल हाथी की भाँति राजपद के सर्वथा अयोग्य है अर्थात् जिस प्रकार पागल हाथो जनसाधारण के लिए भयंकर होता है उसी प्रकार जब मनुष्य में राजनीतिक ज्ञान, आचार सम्पति, शूरयोरता आदि गुण नष्ट होकर उन के स्थान पर मूर्खता, अनाचार और कायरता आदि दोष घर कर लेते हैं तब वह पागल हाथी की तरह भयंकर हो जाने से राजपद के योग्य नहीं रहता (५, ४३) । मूर्ख राजा की भो समस्त राजशास्त्र बेताओं ने निन्दा की है। आचार्य सोमदेव तो यहाँ तक कहते हूँ कि राज्य में राजा का न होना श्रेष्ठ है किन्तु उस में मूर्ख राजा का किसी भी प्रकार से होना ठोक नहीं है (५.३८) । मूर्खता के साथ ही दुराग्रह भी राजा का दूषण है । मूर्ख और दुराग्रही राजा से राष्ट्र को हानि होती है, क्योंकि वह हितैषी पुरुषों की परम हितकारक बात की भी अवहेलना करता है जिस से राष्ट्र की श्रीवृद्धि नहीं हो पाती (५, ७५ ) । व्यसनी राजा से भी राष्ट्र का अहित होता है । इस सम्बन्ध में आचार्य का कथन है कि जो राजा १८ प्रकार के व्यसनों में से किसी एक व्यसन में भी ग्रस्त है वह चतुरंगसेना ( हाथी, घोड़े, रथ, पदाति ) से युक्त हुआ भी नष्ट हो जाता है । स्वेच्छाचारिता मी राजा का महान् अवगुण है। जो राजा किसी को बात न मानकर मनमाने ढंग से शासन करता है वह चिरकाल तक सुखो तथा सुरक्षित नहीं रहता । आचार्य इस सम्बन्ध में लिखते हैं कि स्वेच्छाचारी आत्मीयजनों अथवा शत्रुओं द्वारा नष्ट कर दिया जाता है ( १०, ५८ ) । विजयलक्ष्मी के इच्छुक पुरुष को कदापि काम के वशीभूत नहीं होना चाहिए। काम, क्रोध, लोभ, मद, मान, हर्ष ये राजाओं के ६ अन्तरंग वात्रु है । जो राजा जितेन्द्रिय और नीतिमार्ग का अनुसरण करने वाला है ( सदाचारी है) उस को लक्ष्मी प्रकाशवान् और कीर्ति आकाश को स्पर्श करने वाली होती है | सदाचार वंश परम्परा या पुरुषार्थ से प्राप्त हुई राजलक्ष्मी के चिरस्थायी बनाने में कारण हूँ । नीति विरुद्ध असत् प्रवृत्ति, दुराचार से राज्य नष्ट होता है । अतः जो राजा अपने राज्य को चिरस्थायी बनाने का इच्छुक है उसे सदाचारी होना चाहिए (५,२८) । निरभिमानता तथा अभिमान से होने वाले परिणाम की व्याख्या करते हुए सोमदेव लिखते हैं कि निरभिमानता से ही पराक्रम की शोभा बढ़ती है ( ५,२९ ) । जो राजा अभिमान के कारण अपने अमात्य, गुरुजन और बन्धुओं की उपेक्षा करता है वह रावण की तरह नष्ट हो जाता है । इस प्रकार सोमदेवसूरि ने राजा के गुण-दोषों का बड़े विस्तार के साथ वर्णन किया है । राजा के उपर्युक्त गुणों के कारण राष्ट्र तथा राजा को क्या लाभ होते हैं और १. गुरु- नीतिवा० ५० ५३ । ર नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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