SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपनी निरन्तर मामा के गानों पर विचार किया, तो वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि उन की पराजय इसलिए होती है कि उन का कोई राजा नहीं है । अतः उन्होंने सर्व सम्मति से राजा का निर्वाचन किया ।" 'इस से प्रकट होता है कि युद्ध की आवश्यकताओं के परिणामस्वरूप राज्यसत्ता का प्रादुर्भाव हुआ। मनु और शुक्र ने भी राजा की आवश्यकता के विषय में लिखा है। यह वर्णन इस प्रकार है. "जब विश्व में कोई राजा नहीं था और उस के अभाव में समस्त जनता भम से असित होकर नष्ट-भ्रष्ट होने लगी, तो ब्रह्मा ने संसार की रक्षा के लिए राजा का सृजन किया।" 'कौटिल्य ने भी इसी प्रकार लिखा है कि 'जब दण्डवर के अभाव में मात्स्यन्याय को उत्पत्ति हो गयी और बलवान् दुर्बलों को नष्ट करने लगे तो प्रजा ने वैवस्वत मनु को राजा बनाया । कामन्दक ने भी इसी प्रकार के विचार व्यक्त किये हैं। इस प्रकार समस्त राजशास्त्र प्रणेताओं ने राजा का होना परम आवश्यक बतलाया है तथा उस के न होने से विश्व की महान् पति होने की बात कही है। ___ आचार्य सोमदेव भो राजा. के महत्त्व का अनुभव करते हैं और राजा को ही समस्त प्रकृति वर्ग की उन्नति का आधार मानते हैं। राजा के कारण ही प्रकृतिवर्ग के समस्त प्रयोजन सिद्ध होते हैं। स्वामों के अभाव में उन को अभिलषित फल की प्राप्ति नहीं हो सकती ( १७, ३ ) । स्वामी रहित प्रकृतिवर्ग समृद्ध भो तर नहीं सकते ( १७, ४)। आचार्य सोमदेव ने एक सुन्दर उदाहरण द्वारा राजा के अभाव में होनेबाली हानि का उल्लेख करते हुए लिखा है कि जिन वृक्षों की जड़ें उखड़ चुकी हैं उन से पुष्प-फलादि की प्राप्ति के लिए किया गया प्रयत्न सफल नहीं हो सकता ( १७, ५ )। ठीक उसी प्रकार राजा के नष्ट हो जाने पर प्रकृति वर्ग द्वारा अपने अधिकार प्राप्ति के लिए किये गये प्रयत्न मी निष्फल होते हैं। राजा को उत्पत्ति राजा की उत्पत्ति किस प्रकार हुई इस सम्बन्ध में भारतीय विचारकों ने कई सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है, जो निम्नलिखित है। १. वैदिक सिद्धान्त-राजा की उत्पत्ति का सब से प्राचीन और सब प्रथम सिद्धान्त वैदिक सिद्धान्त है। इस के अनुसार राजा की उत्पत्ति युद्ध में नेता की आवश्यकता के परिणामस्वरूप हुई। इस सिद्धान्त का वर्णन ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है। देवताओं और असुरों के मध्य होने वाले युद्धों में जब निरन्तर देवताओं ( आर्यों ) की पराजय होती रही तो देवों ने अपनी पराजय के कारणों पर विचार किया। विचार १.२० वा०१, १४ २. मनु०७, ३, शुक्र० ६.७१। ३. कौ० अथ०१. १३ ४. कामादक २.४०1 ६. ऐ० बाय १, १४। . नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy