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________________ इन आवश्यक कार्यों के साथ ही सोमदेवसूरि ऐच्छिक कार्यों को भी अधिक महस्व देते हैं, क्योंकि उन के अभाव में प्रजा का सर्वतोमुखी विकास असम्भव है । राज्य की नीति लोककल्याण पर आधारित होनी चाहिए। इस बात में आचार्य को आस्था है। इसी कारण वे राज्य को ऐसे कार्य करने का आदेश देते है जो प्रजा के कल्याण में सहायक हों । वार्ता - कृषि, व्यापार आदि की उन्नति करना वे राज्य का कर्तव्य बतलाते हैं (८, २ ) । आचार्य की दृष्टि में राज्य का कार्य केवल अपनी प्रजा की भौतिक उन्नति करता हो नहीं है, का भी है। आचार्य प्रथम समुद्देश में सर्वप्रथम धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थों की प्राप्ति कराने वाले राज्य को नमस्कार करते हैं। इस का अभिप्राय यही है कि प्रजा को धर्म, अर्थ और काम पुरुषायों को प्राप्ति कराना राज्य का ही कार्य है । इस समस्त विवरण से यह स्पष्ट है कि राज्य का कार्य केवल रक्षात्मक ही नहीं है, अपितु उन सभी कार्यों का सम्पादन करना है जिस से प्रजा का सब प्रकार से कल्याण हो । आधुनिक विद्वानों ने लोक कल्याणकारी राज्यों का जो वर्णन किया है उस का दिग्दर्शन हम को सोमदेवसूरि द्वारा प्रतिपादित राज्य व्यवस्था में पूर्ण रूप से होता है । आचार्य सोमदेवसूरि ने जिस प्रकार के राज्य का वर्णन किया है वह लोक कल्याणकारी राज्यों की श्रेणी में प्रथम स्थान पर रखा जा सकता है । राज्य का उद्देश्य - आचार्य सोमदेवसूरि अपने ग्रन्थ को प्रारम्भ करने से पूर्व ऐसे राज्य को नमस्कार करते हैं, जो प्रजा को धर्म, अर्थ और काम इन तीन पुरुषार्थी को प्रदान करने में समर्थ है। इस से स्पष्ट है कि अन्य आचायों की भांति सोमदेव भी इस बात का समर्थन करते हैं कि राज्य का उद्देश्य प्रजा को धर्म, अर्थ और काम को प्राप्ति कराके मोक्ष के लिए तैयार करना है। भारतीय दर्शन की भाँति राजधर्म का भी अन्तिम ध्येय मोक्ष प्राप्ति ही था । परन्तु मोक्ष की प्राप्ति तो व्यक्तिगत साधना तथा तपस्या पर निर्भर करती है और इस की प्राप्ति कोई बिरला ही व्यक्ति कर सकता हैं। प्राचीन राजनीतिज्ञों ने राज्य का यह कर्तव्य निर्धारित किया था कि वह ऐसे अपने वातावरण को उत्पन्न करे जिस से समस्त प्राणी सुख और शान्ति से रह सकें, निर्धारित व्यवसाय को करने में समर्थ हो सकें, बिना किसी के हस्तक्षेप किये अपने श्रम द्वारा प्राप्त फल को भोग सकें और अपनी सम्पत्ति का उपभोग कर सकें तथा स्वधर्म का पालन कर सकें । यह प्रयोजन प्रजा को धर्म, अर्थ ही सम्भव था । अतः समस्त प्राचीन विचारकों ने राज्य का पुरुषार्थी - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति बताया है । बार्हस्पत्य सूत्र में लिखा है कि राजधर्म का उद्देश्य धर्म, अर्थ और काम की प्राप्ति है । और काम की प्राप्ति से उद्देश्य प्रजा को चारों १. बार्हस्पत्य सूत्र - २४३ - ४१४ ॥ नीतेः फर्ल धर्मार्थकामावाप्तिः । धर्मेलार्थकामौ प ५० मीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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