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________________ ग्रन्थ में की गयी है । विजिगीषु जिज्ञासु के लिए इस में विस्तृत ज्ञान का भण्डार है। इस के अध्ययन से कोई भी राजनीति का जिज्ञासु पूर्ण प्रकाश प्राप्त कर सकता है । यह ग्रन्थ वास्तव में राजनीति के संचित ज्ञान की अपूर्व निधि है । कोई भी राजा इस निधि को प्राप्त कर के अपने को तपस्य कर सकता है। राजनीति के क्षेत्र में वस्तुतः नीतिवाझ्यामुस का महत्वपूर्ण स्थान है) सोमवेवसूरि को बहुजता सोमदेवसरि की विद्वत्ता में किसी को भी सन्देह नहीं हो सकता। वास्तव में वे उद्भट विद्वान् थे और उन का ज्ञान बहमुखी था। ये विविध विषयों के ज्ञाता थे। आचार्य सोमदेव बहुज्ञ धर्मशास्त्री, महाकवि, दार्शनिक, तर्कशास्त्री एवं अपूर्व राजनीतिज्ञ ३: अस्सिम 1 2. जनकन से उन के विशाल अध्ययन एवं विविध शास्त्रों के ज्ञाता होने के प्रमाण मिलते हैं । उन की अलौकिक प्रतिमा पाठकों को चमत्कृत कर देती है। सोमदेव सुरि कृत साहित्य के अध्ययन से इन का धर्माचार्य होना निश्चित होता है । जैन धर्म में स्वामी समन्तभद्र का 'रत्नकर' नावकों का एक श्रेष्ठ आचार शास्त्र है। उस के पश्चात् सोमदेवमूरि ने हो स्वाधीनता, मामिकता और उत्तमसा के साथ प्रशस्तिलक के अन्तिम दो बाश्वासों में श्रावकों के आधार का निरूपण किया है । ऐसा विस्तृत विवेचन अभी तक किसी भी अन्य जैन भाचार्य ने नहीं किया है । इस सम्बन्ध में यस्तिलक का उपासकाध्ययम अवलोकनीय है। उस से बिदित होता है कि धर्मशास्त्रों में भी गलिकता और प्रतिभा के लिए विस्तृत क्षेत्र है । सोमदेव को ‘अवलंफदेव', 'हंस सिद्धान्त देव', और पूज्यपाद जैनेन्द्र व्याकरण के रचयिता देवनन्दो के समान ही प्रतिष्ठित माना गया है। धर्मावार्य होने के कारण उन में उदारता का महान गुण भी दृष्टिगोचर होता है। वे धार्मिक, लौकिक, दार्शनिक सभी प्रकार के साहित्य के अध्ययन के लिए सम को समाम अधिकारी मानते है। उन के विचार में गंगा आदि तीर्थों के मार्ग पर जिस प्रकार ब्राह्मण से लेकर चाण्डाल तक सभी चल सकते हैं उसी प्रकार शास्त्रों के अध्ययन में भी सब का समान अधिकार है । जैनेतर विद्वानों का भी वे आदर करते है । यह सत्य है कि अन की स्वतः जैन सिद्धान्तों में अवल आस्था है और इसी कारण उन्होंने मशस्तिलक में अन्य सिद्धान्तों का खण्डन और जन सिद्धान्तों का मण्डन किया है। फिर भी १.नासित्र:०, प्रशस्ति पृ०६ । सकन शमयत नाकलकोऽसि वादी, न भषसि सपोक्ती सारवान्देकः । न च वचनविना पूर यादोरा तय वसि कथमिवामी सोमदेवेना २. यश०१,२० लोको जिः कानान्दोकाररा: स्यागाः । मर्व रावरगाः महिभस्तीर्थगा इव स्मृताः । खोमदेवपूरि और उन का मोतियाक्यामृत
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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