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________________ विष दूषित शराब के कुरले से अजगजा को, सूरसेम ( मथुरा ) में वसन्तमसि ने विष के आलेप से रंगे हुए अबरों से सुरतविलास नामक राजा को, शार्ण में वृकोदरी ने विलिप्त करधनी से मदनार्णव राजा को, मराठा देश में मदिराक्षी ने तीखे दर्पण से मन्मय विनोद को, पाण्डए देश में बण्डरसा रानी ने केशविन्यास में छिपी हुई कृपाण से मुण्डीर नामक राजा को मार डाला ( २५, ३५-३६) । यशस्तिलक में बहुत से पौराणिक माख्यानों का वर्णन मिलता है। इन प्रसंगों से सोमदेव के विस्तृत एवं व्यापक ज्ञान को को मिलती है ।' नीतिवाक्यामृत में प्राचीन राजाओं के नामों का उल्लेख मिलता है। किन्तु उन को ऐतिहासिकता सिद्ध करने का हमारे पास कोई 'साधन नहीं है। जीवनोपयोगी सूक्तियों का सागर / जिस प्रकार अमृत का एक-एक बिन्दु मानव को जीवित रखने में समर्ध है उसी प्रकार नीतिवाक्यामृत का भी प्रत्येक सब जीवन के लिए महोपयोगी है। यह उन्ध नीतिप्रद सकियों का आगार है। ग्रन्थ के कुछ अवीव उपयोगी सत्र यहां उद्धृत किये जाते है १. मजितेन्द्रिय को किसी भी सिद्धि मारें होती ३, ५॥ २. उस अमृत को त्याग हो जहाँ विष का संसर्ग हो ( ५, ७२)। ३. जिस पाप के करने पर महान् धर्म को प्राप्ति हो वह पाप भी पाप नहीं है ( ६, ४३ )। ४. प्रिय बोलने वाला मयूर के समान शत्रु रूप सौ को नष्ट कर देता है ५. असत्यवादी के समस्त गुण नष्ट हो जाते हैं ( १७, ६)। ६. क्षणिक चित्त वाला कुछ भी सिद्ध नहीं करता ( १०, १४२)। ७, पुरुष, पुरुष का दास नहीं अपितु घन का दास है ( १७, ५४ ) । इस प्रकार के अनेक नीतिप्रद वाक्य इस अन्य में व्याप्त है, जो मानव जीवन को सफल एवं समुन्नत बनाने के लिए बहुत उपयोगी सथा अमृततुल्य हैं। ) (उपर्युक्त विवरण से नीतिवाक्यामृत का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है । इस ग्रन्थ के महत्व को शब्दों में वर्णन करना कठिन है। इस की जितनी भी प्रशंसा को जाये वह थोड़ी है। ग्रन्थ के अवलोकन से पाठक को राजनीति शास्त्र से सम्बन्धित प्रत्येक बात का पूर्ण एवं सारगभित ज्ञान प्राप्त हो जाता है । मानव समाज को मर्यादित रखने वाले राज्यशासन एवं उसे पल्लवित, संवचित एवं सुरक्षित रखनेवाले राजनीतिक तत्त्वों का प्रस्तुत ग्रन्थ में मनोवैज्ञानिक रूप से विश्लेषण हुआ है। मानव जीवन को समुन्नत बमाने वाले एवं उस का पथ प्रदर्शन करने वाले समस्त विषयों की पर्था इस महत्वपूर्ण १. यश० आ०४, १० १३८-३E | नीवियायामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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