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तिथि (वि० सं० १०६४) का मेल नहीं खाता। इस के अतिरिक्त राजशेखर महेन्द्रपाल प्रथम के समकालीन थे और उन को कन्नौज नरेश का राज्याथम प्रास था। राजशेखर नेसन बायो ग ई: EI बाध्य साया है। यशस्तिलक ( ९५९ ई० ), तिलकमंजरी ( १००० ई.) और व्यक्तिविवेक { ११५० ) आदि ग्रन्थों में राजशेखर का उल्लेख मिलता है। इस प्रकार राजशेखर का समय दसवीं शताब्दी का प्रथम चरण निश्चित होता है। यशस्सिलक में सोमदेव ने एक स्थान पर महाकवियों के नामों का उल्लेख किया है। उन में अन्तिम नाम राजशेखर का है। इस से स्पष्ट है कि सोमदेव के समय में राजशेखर का नाम प्रसिद्ध था। इस प्रकार राजशेखर का आविर्भाव सोमदेव से बर्द्ध शताब्दी पूर्व अवश्य हुआ होगा। राजशेखर महेन्द्रपाल के उपाध्याय और उन के समकालीन माने जाते हैं।'
अतः सोमदेव का सम्बन्ध कान्यकुब्ज नरेश महेन्द्रपाल से जोड़ना युक्ति-संगत नहीं। यह बात भी नीतिवाक्यामृत को प्रशस्ति से निश्चित है कि यह अन्य यशस्तिलक के बाद रचा गया। प्रशस्तिलक का रचनाकाल वि० सं० १०६४ है। अतः नीतिवाक्यामृत की तिथि उस के पश्चात् ही होनी चाहिए। महेन्द्रपाल के शासनकाल और नौतिवाश्यामृत के रचनाकाल में कम से कम ५५ वर्ष का अन्तर दृष्टिगोचर होता है। इस कारण नीतिवाक्यामृत की रचना को महेन्द्रपाल के आग्रह पर बताना नितान्त
संगत है । इस के अतिरिक्त देवसंघ दक्षिणमारत में है और कन्नौज उत्तर भारत में । इस प्रकार यह भी आश्चर्यजनक प्रतीत होता है कि सोमदेव ने दक्षिण भारत के चालुक्य नरेशों एवं महान् राष्ट्रकुट सम्राट् कृष्ण तृतीय का राज्याश्रय प्राप्त न कर उत्तर भारत में आकर कम्नौज के महाराज महेन्द्रपाल को संरक्षता प्राप्त की। यह बात नीतिवाक्यामृत के टीकाकार ने किसी अनश्रुति के आधार पर ही लिखी है और उस का अनुकरण अन्य विद्वानों ने भी किया है। किन्तु वास्तव में इस ग्रन्थ का आग्रहकर्ता चालुषयवंशी अरिकेसरी तृतीय का पुत्र सामन्त बहिग अथवा बहिग का पुत्र अरिकेसरी चतुर्थ ही होगा। श्री नोलकण्ठ शास्त्री के वर्णन तथा लैमुलबाढ दानपत्र से सामदेव का चालुक्यों के सम्पर्क में आना प्रमाणित होता है। जब सोमदेव ने अपने चम्पूमहाकाव्य यशस्तिलक की रचना चालुक्य नरेश दहिग की संरक्षक्षा में की तो उन के द्वितीय ग्रन्थ की रचना को पालुष्यों के आग्रह पर स्वीकार वारना युक्तिसंगत प्रतीत होता है। लैमुलवाड दानपत्र के उत्कीर्ण किये जाने के समय सोमक्षेत्र की आयु सम्भवतः शत वर्ष की हो और वे शुभधाम जिनालय में अपना विरक्त जीवन व्यतीत कर रहे हो, ऐसा मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए 1 हमारे विचार से नीतिवाक्यामृत यशास्तिलक १. IDr. R.S. Tripathi-JIistory of Kanauti, 3'. 2GE. २. स्वर्ग:440 वाशेखर पाडेय, संस्कृत साहित्य की रूपरेखा, पृ०४०४.१० ३. यश, आ०४, पृ० १११
तपाः बभावि, भवभूति-भर्तृहरिः-जोखाधनहाकविका नौ3. [.R.S. Tripathi...History of Kananj, P. 253.
सोमदेवसूरि और उन का नीतिवाक्यामृत