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________________ शो के० के० हण्डीको सोमदेव का आश्रयदाता किसी भी राजा को महीं मानते । उन का कथन है कि "सोमदेव जैन आचार्य थे, इसी कारण उन्होंने अपने अन्य के प्रारम्भ में आदर के साथ अपने गुरु को बन्दना की है 1 धर्माचार्य होने के साथ ही वे एक महान राजनीतिज्ञ भी थे इसी कारण उन्होंने अपने ग्रन्थ में धर्म, अर्थ, काम के प्रदान करने वाले राज्य को नमस्कार किया है। आगे हण्डोको महोदय लिखते हैं कि, यह बात भी निश्चित रूप से कही जा सकती है कि सोमदेव दरबारी जीवन से भलीभौति परिचित थे तथा उन्होंने राष्ट्रकूटों से कार में कुछ बनर अप मासीक विमा होगा । यशस्तिलक के तृतीय आवास में राजदरबार का जैसा चमत्कारपूर्ण वर्णन हुआ है उस के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह वर्णन गंगाधारा जैसी छोटी राजधानी के सम्बन्ध में कबापि नहीं हो सकता । यह वर्णन तो एक ऐसे राजदरबार का द्योतक है जो सार्वभौम हो, जिसे युद्ध और सन्धि का सर्वाधिकार हो तथा जिस के अधिकार में समस्त देश की सेना हो ।' श्री के. के. हण्डोकी के इस विचार से तो हम सहमत है कि यशस्तिलक के तुतीय अश्वास में जो वर्णन हुआ है वह किसी महान् परबार का द्योतक है। यह सम्भव है कि सोमदेव राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्ण तृतीय के राजदरबार में कुछ समय तक रहे हों। कृष्ण तृतीय विद्वानों का आश्रयदाता था और उस ने कन्नड़ भाषा के प्रसिद्ध कवि पोन को उभयभाषाकविश्चक्रवर्ती की उपाधि से विभूषित किया था। सोमदेव महान् विद्वान् श्रे और वे कृष्ण तृतीय के समकालीन भी थे। इस में कोई आश्चर्य की बात नहीं कि राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्ण तृतीय ने सोमदेव को अपने दरबार में आमन्त्रित किया हो। वहाँ रहकर उन्होंने दरवारी जीवन का अध्ययन कर के चालुक्य वंश के राजा रिकेसरो द्वितीय के पुत्र, सामन्त बदिग की राजधानी गंगाधारा में यशस्तिलक के तृतीय आश्बास में दरबारी जीवन के अनुभवों को व्यक्त किया। ऐसा मानने में कोई अनौचित्य मही। श्री हण्डोकी महोदय के इस विचार से हम सहमत नहीं कि सोमदेव का आश्रयदाता कोई नहीं था। मशस्तिलक की पद्यप्रशस्ति एवं लेमुलवाई दानपत्र से यह स्पष्ट है कि सोमदेव का सम्बन्ध चालुक्य नरेशों से बहुत घनिष्ठ था और उन्हीं का राज्याथय उन्हें प्राप्त था। अतः यह बात किस प्रकार स्वीकार की जा सकती है कि सोमदेव को किसी भी राजा का राज्याश्रय प्राप्त नहीं था। उपर्युक्त सम्पूर्ण विवरण के आधार पर हम यह बात निश्चयपूर्वक कह सकते है कि मीसिवाक्यामृत को रचना कप्नौज के राजा महेन्द्रपाल प्रथम महीपाल अथवा महेन्द्रपाल द्वितीय किसी भी राजा के आग्रह मथश राज्याधय में नहीं हुई। उपर्युक्त राजाओं के राज्यकाल की ज्ञात तिथियों { महेन्द्रपाल प्रथम वि० सं० ९६४, महीपाल ९७४ ई० तथा महेन्द्रपाल द्वितीय १००३ ) से सोमदेव के यशस्तिलक को रचना को 3, K.K. Hanidiqur. Yxlaslilaka.ud (ndian Culture, Cn. 1, PP. 5-6, नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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