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प्राक्कथन
— न्याय एवं विधि के अध्ययन की भांति भारत में राजनीतिशास्त्र के अध्ययन को परम्परा अठारहवीं शतागी तम, अण्ण माहित होती रही । अामार्य सोमदेवसूरि का 'नीतिधाषयांमूल' भी इसी परम्परा में विरचित राजशास्त्र का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। आचार्य सोमदेव का द्वितीय महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ 'यशस्तिलक चम्पू है । इन दोनों ग्रन्थों में राजनीतिक आदर्शों एवं संस्थाओं का विस्तारपूर्वक प्रतिपादन किया गया है। राजनीतिक दृष्टि से 'यशस्तिलक' का तृतीय आश्वास अचलोकनीय है । ये दोनों अन्य एक-दूसरे के पूरक है और ये सोमदेव के सूक्ष्म अध्ययन, महान् अनुभव, मद्वितीय विद्वत्ता तथा बहुमुखी प्रतिभा के परिचायक हैं ।
प्रस्तुत पुस्तक लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा पी. एच-डी. के लिए स्वीकृत लेखक के शोध-प्रबन्ध 'नीतिवाक्यामृत में राजनीतिक आदर्श एवं संस्थाएं' का संशोधित रूप है। इस में नौतिवाक्यामत में प्रतिपादित राजनीतिक आदर्श एवं संस्थाओं का वैज्ञानिक और तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन किया गया है । राजशास्त्र का यह महत्वपूर्ण प्रन्थ अभी तक उपेक्षित ही था । इस ग्रन्थ के उचरण कुछ राजनीति-प्रधान ग्रन्थों में उपलब्ध होते है तथा पत्र-पत्रिकाओं में भी इस के कतिपय विषयों पर लेख प्रकाशित हुए हैं। किन्तु सांगोपांग रूप से इस सम्पूर्ण ग्रन्थ के आधार पर कोई अन्य प्रकाशित नहीं हुआ है। वैज्ञानिक ढंग से इस अन्य के विवेचन का यह सर्वप्रथम प्रयास है । इस के विवेचन को मौलिकता को सुरक्षित रखने के लिए लेखक ने सोमदेव के मूल ग्रन्थों---'नौविवाक्यामृत' एवं 'यशस्तिलक चम्पू का हो आश्रय लिया है।
प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के निदेशक एवं प्रेरक डॉ. रामकुमारजी दीक्षित-भूतपूर्व डोन, फैकल्टी ऑफ़ आर्ट स तथा अध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ-का लेखक हृदय से आभारी है, जिन्होंने अत्यन्त स्नेहपूर्वक इस शोध-प्रबन्ध का निदेशन किया। पोध-प्रबन्ध को ग्रन्थ-रूप देते समय पूज्य विद्वन्मूर्धन्य डॉ. आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्येजो ने बहुमूल्य- सुमाव दिये, जिन के सुझावों से मह रचना और भी उपयोगी हो गयी है। परिशिष्ट में 'नोतिबाक्यामृत' के सम्पूर्ण समुद्देशों का समावेश उन्हीं के परामर्श पर किया गया है। दोनों विद्वानों के चरणों में लेखक अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करता है । भारतीय ज्ञानपीठ को परामर्शदात्री