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________________ युद्ध के लिए प्रस्थान जब विजिगीषु शत्रुयुद्ध करने के लिए प्रस्थान करे तो उस के सेनाध्यान का यह कर्तव्य है कि वह आधी सेना को शस्त्रादि से सुसज्जित कर के रक्षित रखे, तदुपरास्त विजिगीषु को शत्रु पर आक्रमण करने के लिए प्रस्थान करना चाहिए। जब बह शत्रु सैन्य की ओर प्रस्थान करने में प्रयत्नशील हो, तब उस के समीप चारों ओर सेना का पहरा रहना चाहिए तथा उस के पीछे शिविर में भी सेना विद्यमान रहनी चाहिए (३०, ९६) । इस का कारण यह है कि विजिगीषु कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, परन्तु वह यान के समय व्याकुल हो जाता है और शूरवीर लोग उस पर प्रहार कर देते हैं । जब विजिगीषु दूरवर्ती हो और शत्रु को सेना उस की ओर जा रही हो तो ऐसे अवसर पर वन में रहने वाले उस के मुप्तचरों को चाहिए कि वे धुआं करने, आग जलाने, धूल उड़ाने अथवा भैसे का सींग फंकने का याद करने का बहाना कर के उसे शत्रु की सेना के आने का समाचार दें, ताकि उन का स्वामी सावधान हो जाये (३०,९६)। विजिगीषु शत्रु के देश में पहुंचकर अपनी सेना का पड़ाव ऐसे स्थान पर स्थापित करें जो मनुष्य की ऊँचाई के बराबर ऊंचा हो, जिस में थोड़े व्यक्तियों का प्रवेश, भ्रमण तथा निकास हो, जिस के आगे विगाल ममा सरल के लिए पर्याप्त स्थान हो, उस के मध्य में स्वयं ठहर कर उस में अपनी सेना को टहरावे । सर्व-साधारण के आने-जाने योग्य स्थान में सैन्य का पड़ाव डालने एवं स्वयं ठहरने से विजिगीषु अपनी प्राण रक्षा नहीं कर सकता है (३०, ९८-९९) । विजिगीषु पैदल, पालको अथवा घोड़े पर चढ़ा हुवा शत्रु भूमि में प्रविष्ट न होवे, क्योंकि ऐसा करने से अचानक शत्रु द्वारा उपद्रव किये जाने पर वह उन से अपनी रक्षा नहीं कर सकेगा ( ३०, १००)। अब विजिगीषु हाथों अथवा वाहन-विशेष पर आरूढ़ हुआ शत्रु-भूमि में प्रविष्ट होता है तो उसे शत्रु के उपद्रवों का भय नहीं रहता (३०,१०१)। नगर का घेरा किस अवसर पर डालना उचित होगा, इस सम्बन्ध में आचार्य सोमदेव लिखते हैं कि जब शत्रु महापान आदि व्यसनों व आलस्य में प्रसित हो तथा विजिगीषु को उत्तम सैन्य उस के नगर में भेजकर शत्रु-नगर का घेरा डालना चाहिए १३०, ८९)। प्यूह और उस का महत्त्व युद्धक्षेत्र में संग्राम करने के लिए सेना को जो व्यवस्था की जाती है उसे न्यूह कहते हैं। व्यूह-रचना भी मुख को दृष्टि से महान् कौशल है। कभी-कभी इसी म्यूहरचना-कोपाल के कारण अल्पसंख्यक सेना बहुसंख्यक सेना पर विजय प्राप्त कर लेती है। कुरुक्षेत्र में पाण्डवों की व्यूह रचना इस का प्रत्यक्ष प्रमाण है। पाण्डव नित्य नये दंग का व्यूह बनाया करते थे, इसी कारण उन को. अपेक्षाकृत अस्प सेना कोरबों की विशाल सेना पर विजयी हुई। व्यूह-रवना दो प्रकार से की जाती है, एक तो वह नीतिबाश्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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