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________________ संचालन इस प्रकार करना चाहिए कि राजमण्डल में, जिस से वह घिरा हुआ है, शक्ति. सन्तुलन बना रहे। मण्डल सिद्धान्त आचार्य सोमदेव ने भी नीतिवाक्यामृत के षाड्गुण्य समुद्देश में इस सिद्धान्त की विशद विवेचना की है। इस सिद्धान्त का उल्लेख विजिगीषु राजा के सम्बन्ध में किया गया है। इस मण्डल में सामान्यत: १२ राजा होते थे। प्रथम विजिगोषु होता है जिस का तात्पर्य है एक महत्त्वाकांक्षी तथा विजेता शासक हमारे सभी ग्रन्थ राजा के समक्ष विग्विजय तथा साम्राज्य विस्तार का मादर्श उपस्थित करते हैं। अतः उन राजाओं को अपनी शासन-नीति मण्डल सिद्धान्त के अनुसार संचालित करनी चाहिए ।। कौटिल्य के अर्थशास्त्र तथा सोमदेवसूरि के नीतिवाण्यामृत में मण्डल के राजाओं की गणना में कुछ अन्तर है । परन्तु सिद्धान्त मूलतः एक ही है । सोमदेवमूरि ने मण्डल का निर्माण निम्नलिखित सत्त्वों (राज्यों) से बताया है १. उदासीन-आचार्य सोमदेव ने उदासीन राज्य को व्याख्या इस प्रकार की है। जो राजा विजिगीषु, उस के शत्रु तथा मध्यम के आगे-पीछे या पाश्र्व भाग में स्थित हो और जो युद्ध करने वालों को विग्रह करने में और उन्हें युद्ध से रोकने में सामर्थ्यवान् होने पर भी किसी कारण से दूसरे विजिगीषु राजा के विषय में जो उपेक्षा करता है, उस से युद्ध नहीं करता, उसे उदासीन कहते है (२९, २१) । आचार्य कौटिल्य ने भी उदासीन राजा का उल्लेख अपने अर्थशास्त्र में किया है और उस की परिभाषा इस प्रकार थी है-विजयाभिलाषी और मध्यम राजाओं से परे अपनी बलिष्ठ सप्त प्रकृतियों से सम्पन्न बलवान् राजा शत्रु, विजयाभिलाषी और मध्यम राजाओं को पृथक्-पृथक् अथवा सब को एक साथ सहायता देने अथवा उन का विग्रह करने में समर्थ हो ऐसा राजा उदासीन राजा कहलाता है। २. मध्यस्थ-जो प्रबल सैन्य से शक्तिशाली होने पर भी किसी कारणवश विजय कामना करने वाले दोनों राजाओं के विषय में मध्यस्थ बना रहता है। उन से युद्ध नहीं करता वह मध्यस्थ कहा गया है (२९, २२) । इस मध्यस्थ राजा की एक विशेषता यह भी होती है कि विजयाभिलाषी राज्य और उस के शत्रु राज्य दोनों के राज्यों की सीमा पर यह रिपत होता है (२९, २३)। ३. विजिगीषु-जो राज्याभिषेक से अभिषिक्त हो चुका हो और भाग्यशाली, कोश, अमारप आदि प्रकृति युक्त हो एवं राजनीति में निपुण शूरवीर हो उसे विजिगीषु कहते हैं। आचार्य कौटिल्य ने भी विजिगीषु की परिभाषा दी है जो इस प्रकार है(आत्मगुण सम्पन्न अमात्यादि पंचद्रव्य प्रकृति गुणसम्पन्न एवं सन्धि विग्रह आदि के भली-भाति प्रयोग बनित नय के आश्रय में रहने वाले राजा को बिनिगोषु कहते हैं।' १. ममु०५, १६४-५६; कामन्दक सर्ग , कौटिषय ६.३। २. मह । २। १५८ नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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