SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पड़ोसी राज्यों की गतिविधियों का ज्ञान गुप्तचरों द्वारा ही होता है। अतः राजाओं की सुरक्षा तथा कल्याण के लिए उन का उपयोग आवश्यक माना जाता था 1 गुमचरों . के गुणों के सम्बन्ध में आचार्य सोमदेव लिखते हैं कि सन्तोष, आलस्य का न होना, उत्साह, निरोगता, सत्यभाषण और विचारशक्ति का होना ये गुप्तचरों के गुण हैं (१४, २) विमल मा; के जनक प्रकार का कार्य लिया जाता था। घरों के भेव आचार्य सोमदेव ने निम्न प्रकार के गुप्तचरों का वर्णन किया है-कापाटिक, उदास्थित, गृहपति, वैदेहिक, तापस, किरात, यमपट्टिक, अहितुष्टिक, शौण्डिक, शौषिक, पाटचर, बिट, विदूषक, पीरमर्दक, भिपग, ऐन्द्रजालिक, वैभित्तक, सूद, आरालिक, जवाहक, तीक्ष्ण, कर, रसद, जद, मूक, बधिर, अन्ध ( १४,८)। इस प्रकार राज्य में विभिन्न प्रकार के चरों का जाल-सा बिछा रहता था। इन चरों में कुछ ऐसे होते थे जो शत्र राजा के निकट से निकट पहुँचने का प्रयास करते थे। वहाँ पर किसी प्रकार की नौकरी पर नियुक्त हो जाते थे जिस से कि शासन के आन्तरिक क्षेत्र में जो कुछ भी हो रहा हो उस को सूचना वे अपने राजा के पास भेज सकें । सामन्त शासकों के साथ सम्बन्ध प्राचीन काल में भारत में अनेक सामन्त. जा थे। दिग्विजय की नीति के . कारण एक विजेता विजित राजा के राज्य को अपने राज्य में नहीं मिलाता श्रा, अपितु उस के द्वारा अधीनता स्वीकार कर लेने पर उसे उस के राज्य में आन्तरिक स्वतन्त्रता प्रदान कर देता था। वह पूर्ववत् दिग्विजयो शासक के अन्तर्गत अपने प्रदेश पर शासन करता रहता था । इस प्रकार उस काल में अनेक सामन्त शासक थे । इन सामन्त शासकों के अधीन भी अन्य सामन्त शासक होते थे। सार्वभौम शासक को अपने सामन्त शासकों के साथ सम्बन्ध उन की शक्ति तथा स्थिति के अनुसार भिन्न प्रकार का होला था। परन्तु सम्भवतः सम्राट् के आदेशों का पालन करना, वाषिक कर देना, युद्ध काल में सैन्य सहायता प्रदान करना, राज दरबार में औपचारिक अवसरों पर ही नहीं, अपितु समय-समय पर उपस्थित होना उन के लिए आवश्यक समझा जाता था । अपने दान-पत्रों और शासनों में सम्राट् का नाम सर्वत्र रखना उन के लिए आवश्यक था । सामन्तों के दरबार में सम्राट के हितों की रक्षा के लिए तथा सामन्तों के निमन्त्रण के लिए सम्राट की ओर से प्रतिनिधि भो रहा करते थे। ये प्रतिनिधि गुप्तचरों के द्वारा सम्राट् को उन की गतिविधियों के सम्बन्धों में सूचना देते रहते थे । नीतिवाक्यामत में सामन्तों के विषय में कोई विस्तृत वर्णन तो नहीं मिलता किन्तु सामन्तों के होने का प्रमाण अत्रश्य मिलता है। उस में विजिगोषु राजा का वर्णन आया है नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy