SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस के अतिरिक्त दूत का यह भी कर्तव्य था कि वह यात्रु के मन्त्री, पुरोहित और सेनापति के समीपवर्ती पुरुषों को धन आदि देकर अपने पक्ष में कर के चम से शत्रु हृदय की गुप्त बात ( युद्धादि ) एवं उस के कोश, सैन्य के प्रमाण का निश्चय कर के उस की सूचना अपने स्वामी को दे (१३, ९)। वर्तमान काल की भांति प्राचीन काल में भी दूतों का बघ करना वजित था। सोमदेव ने लिखा है कि दूत द्वारा महान् अपराध किये जाने पर भी उस का बध नहीं करना चाहिए (१३. यदि नाण्यान भी दून जाकर आया हो तो भी राजा को अपना कार्य सिद्ध करने के लिए उस का बध नहीं करना चाहिए ( १३, २०-२१)। दूत सत्य, असत्य, प्रिय, अप्रिय सभी प्रकार के वचन बोलता है। अतः राजा को उस के कठोर वचन सुनने चाहिए | कोई भी बुद्धिमान् राजा दूत के वचनों से क्रोधित अथवा उत्तेजित नहीं होता अपितु उस का कर्तव्य है कि वह ईर्ष्या का त्याग कर के उस के द्वारा कहे हुए प्रिम अथवा अप्रिम सभी प्रकार के वचनों को सुने । जब दूत शत्रु के मुख से अपने स्वामी की निन्दा सुने तो उसे यान्त नहीं रहना चाहिए अपितु उस का यथायोग्य प्रतिकार करना चाहिए । १३, ११)। सैनिकों द्वारा शस्त्र संचालित किये जाने पर भी दूत को अपना कार्य सम्पादित करना चाहिए और शत्रु राजा को अपना सन्देश सुना देना चाहिए । आचार्य सोमदेव का कथन है कि सभी राजा अपने दूत के मुख से बोलते है ( १३, १८) । अतः उसे भयंकर युद्ध के समय भी दूत का बध नहीं करना चाहिए (१३, १९)। क्योंकि उन के द्वारा ही बे अपनी कार्य-सिद्धि ( सन्धि-विग्रहादि ) सम्पन्न कराते हैं। घर पड़ोसी राज्यों में समय-समय पर दूसों का बादान-प्रदान होने पर भी चर चदेव कार्य करते रहते थे और उपर्युक्त सूचना को प्राप्त कर के राजा के पास भेजते रहते थे। नीतिवाक्यामृत में एक पृथक् समुद्देश ( चार समुद्देश ) चरों के सम्बन्ध में है। इस में घरों के प्रकार तथा कर्तव्यों का उल्लेख है। चरों को नियुक्ति किसी भी राजा के लिए घरों को नियुक्ति तथा प्रयोग आवश्यक था ! सोमदेव ने कहा कि जिस राजा के यह गुप्तचर नहीं होते उस पर आन्तरिक तथा बाह्य शत्रुओं द्वारा आक्रमण किया जाता है ( १४, ६) । इसलिए विनिगी का अपने देश में तथा पड़ोसी देशों में गुप्तचर भेजने चाहिए। वास्तव में गुप्तपर अपने देश व परदेश के सम्बन्ध में जान कराने के लिए राजाओं के नेत्र हाते हैं { १४,१)। अपने देश और १. महा सभाग-२६। २. मोतिवाक्यामृत १३.१३ । अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy