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________________ इन अधिपतियों के अधिकार में ओ मुख-सम्बन्धी तथा ग्रामों के प्रवन्ध सम्बन्धी कार्य सपि गये हों, उन की देखभाल कोई आलस्परहित धर्म मन्त्री करे। अथवा प्रत्येक नगर में एक ऐसा अधिकारी होना चाहिए जो सभी कार्यों का चिन्तन और निरीक्षण कर सके । जैसे कोई भरकर प्रह आकाश में नक्षत्रों के ऊपर स्थित होकर परिभ्रमण करता है, उसी प्रकार वह अधिकारी उच्चतम स्थान पर प्रतिक्षित होकर उन सभी सभासद आदि के निकट परिभ्रमण करे और सन के कार्यों को परीक्षा करे । उस मिरीक्षक का कोई गुप्तचर राष्ट्र में घूमता रहे और सभासद आदि के कार्य एवं मनोभाव को जानकर उन के पास समस्त समाचार पहुंचाता रहे । रक्षा के कार्य में नियुक्त हुए अधिकारी लोग प्रायः हिंसक स्वभाव के हो जाते हैं। दूसरों की बुराई चाहने लगते है और शठतापूर्वक पराये धन का अपहरण कर लेते हैं। ऐसे लोगों से वह सर्वार्थचिन्तक अधिकारी इस सम्पूर्ण प्रजा की रक्षा करें। इस प्रकार महाभारत में बहत सुसंगठित शासन-प्रणाली एवं राष्ट्र की रक्षा के उपायों पर बहुत सुन्दर रूप से प्रकाश डाला गया है। इस रोति से कोई भी सरकारी कर्मचारी स्वच्छन्द आचरण न कर सकेगा तथा षष्ठ अन-कल्याण में निरत रहेगा । राजा भी इस अधिकारी वर्ग पर पूर्ण नियन्त्रण रख सकेगा और राष्ट्र-रक्षा के अपने पुनीत कर्तव्य का पालन करने में सर्वथा सफल होगा । मनु ने भी इस सम्बन्ध में पर्याप्त प्रकाश डाला है। ये लिखते हैं कि राजा राज्य की रक्षा के लिए दो-दो, तीन-तीन या पांच-पांच ग्रामों के समूह का एक-एक रक्षक नियुक्त करे । राजा एक-एक, दस-दस, सौ-सौ तथा हजार-हजार ग्रामों का एक-एक रक्षक नियुक्त करे। उपर्युक बो, तीन या पांच ग्राम के रक्षक को नियुक्ति बर्तमान पाने का, सौ ग्रामों के प्रधान रक्षक को नियुकि तहसील या जिला का स्वरूप है और हजार ग्रामों के रक्षक को नियुक्ति कमिश्नरी का घोतक है। ___मनु ने इस विषय पर भी प्रकाश डाला है कि राजा अपनी राजधानी किस स्थान पर बनाये। इस सम्बन्ध में बे लिखते हैं कि राजा जांगल { जहाँ अधिक पानी ने बरसता हो और बार आधि न भासी हों, खुली हवा हो, सूर्य का प्रकाश पर्याप्त रहता हो तथा धान्य आदि अधिक मात्रा में उत्पन्न होता हो ), धान्य और अधिक धर्मात्माओं से युक, भाकुलतारहित, फल-फूलता वृक्षादि से रमणीय, जहां आस-पास के निवासो मन हों ऐसे, अपनी आजीविका मुलभम्यापार, कृषि आदि वाले देश में निवास करे ।' १. महा० शान्ति० ८७.६.१३ । २. मनु०.७, २१५-१६ । ३. बड़ी, ७,६। मामलं सस्यसंपन्नमार्यप्रायमनास्तिम । रम्यमानस्सामम्त स्नाजीथ्यं पेशमावसेत् ॥ राष्ट्र
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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