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________________ बेदखल न करेगा और पीढ़ी दर पीढ़ी उस पर किसान का हो अधिकार रहेगा।' इस प्रकार आचार्य कौटिल्य ने जनपद की स्थापना तथा उस की रक्षा के मम्बन्ध में बहुत सुक्ष्म सृष्टि से प्रकाश डाला है। उपर्युक्त वर्णन के अतिरिक्त इस विषय पर आचार्य ने और भी बहुत कुछ लिखा है जो राजनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। __ महाभारत में भी राष्ट्र की रक्षा तथा वृद्धि के उपायों के सम्बन्ध में वर्णन करते हुए भीम ने जनपद के अन्तर्गत ग्रामों के विविध समूहों तथा उन को व्यवस्था पर पूर्ण प्रकाश डाला है। भीम का कथन है कि एक ग्राम का, दस ग्रामों का, बीस ग्रामों का, सौ ग्रामों का तथा हजार ग्रामों का पृथक पथक एक-एक अधिपति वनाना चाहिए। ग्राम के स्वामी का यह कर्तव्य है कि वह ग्रामवासियों के विषयों का तथा ग्राम में जो-जो अपराध होते हों, उन सब का दही रहकर पता लगावे और उन का पूर्ण विवरण दस ग्रामों के अधिपति के पास भेजे। इसी प्रकार इस ग्रामों वाला बीस मामों वाले के पास और बीस ग्रामों वाला अधिपति अपने अधीनस्थ जनपद के लोगों का सम्पूर्ण विवरण : मानों के अधिकारी भो कि सोनम का अधिकारी हजार ग्रामों के अधिपत्ति को अपने अधिकृत क्षेत्रों की सूचना भेजे । इस के पश्चात हुशार ग्रामों का अधिपति स्वयं राजा के पास आकर अपने यहाँ आये हुए सभी विद्यगों को उस के सम्मुख प्रस्तुत करे। ग्रामों में जो थाय अपवा उपज हो वह सब ग्राम का अधिपति अपने पास ही रखें तथा उस में से नियत अंश का वेतन के रूप में उपयोग करें। उसो में से नियत वेतन देकर उसे दस ग्रामों के अधिपति का भी भरण-पोषण करना चाहिए । इसी प्रकार दस ग्रामों के अधिपति को भी बोस ग्रामों के अधिकारी का भरण-पोषण करना पाहिए । जो सत्कार प्राप्त व्यक्ति सौ ग्रामों का अध्यक्षा हो, वह एक ग्राम की आय को उपमोग में ला सकता है। भरतश्रेष्ठ वह ग्राम बहुत विशाल बस्ती पाला, मनुष्यों से परिपूर्ण और धनधान्य से सम्पन्न हो। उप्त का प्रबन्ध राजा के अधीनस्थ अनेक अधिपतियों के अधिकार में रहना चाहिए। हमार ग्राम का श्रेष्ठ अधिपति एक शाखानगर ( कस्वे ) की आय पाने का अधिकारी है। उस कस्बे में जो अन्न और सुवर्ण की आय हो, उस के द्वारा वह इच्छानुसार उपभोग कर सकता है । उसे राष्ट्रवासियों के साथ मिलकर रहना चाहिए। १. को य०२, १। सेषामन्तरागि नागरिकशारनिन्दचावासारण्यत्ररा रक्षेषुः । कागाचार्य पुरोहितश्रोधियो मलदेयान्यदण्डकारण्याभिरूपकानि नहेव । अध्यक्ष न्यायका दिभ्यो गोपशानीकानोचिकिरसकामकर्जधाल केभ्यश्च विक्रमाधानवजम् करदेभ्यः कृतक्षेत्राग्यैकपुरपाणि प्रयत्तसेच । अकृतानि फत भ्यो नारेयान । २. महा. शान्ति: ८०, ३-५ । ३. वही, ८०,६८॥ नीसिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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