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________________ 'सर्वथा अभाव था, अत्यन्त भ्रमपूर्ण है। वैदिक साहित्य के अध्ययन से यह बात स्पष्ट है कि भारतीयों में प्राचीन काल से ही राष्ट्रीयता की भावना विद्यमान थी । वैदिक ग्रन्थों में 'राष्ट्र' शब्द के अनेक बार उल्लेख से आयों के राष्ट्र प्रेम में कोई सन्देह नहीं रह जाता । यजुर्वेद तथा अथर्ववेद की संहिताओं के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि भारतीयों में राष्ट्रीयता का भाव पूर्णरूपेण निहित था । यजुर्वेद में इस प्रकार का वर्णन प्राप्त होता है --- अपने राष्ट्र में नेता बनकर हम जागरणशील रहें। अथर्ववेद के मन्त्रों में भी राष्ट्रीयता की भावना प्रतिलक्षित होती है। उस में इस प्रकार का वर्णन मिलता है-- "मैं अपनी भूमि के किए और उसके विनी दिए सब प्रकार के कष्ट सहन करने को प्रस्तुत है । वे कष्ट जिस ओर से आयें, चाहे जिस समय आयें, मुझे चिन्ता नहीं ।" दूसरे मन्त्र में इस प्रकार का वर्णन उपलब्ध होता है ។ " २ "अपनी मातृभूमि के सम्बन्ध में जो चाहता हूँ, वह उस की सहायता के लिए हैं। मैं ज्योतिपूर्ण वर्चस्वशाली और बुद्धिमान् होकर मातृभूमि का दोहन करने वाले शत्रुओं का विनाश करता हूँ।"" अथर्ववेद की ही एक सूक्ति का भाव इस प्रकार है- " मेरी माता भूमि है और में उस का पुत्र हैं।" उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि भारत में प्राचीन काल से ही राष्ट्रीयता की प्रवण भावना विद्यमान थी । पाश्चास्य विद्वान् तथा उन का अनुकरण करने वाले भारतीय विद्वानों के इस कथन में कि भारत में राष्ट्रीयता को भावना कभी रही हो नहीं, आंशिक सत्यता भी नहीं है। भारतीय देश को रक्षा के लिए अपनी बलि चढ़ाने के लिए सर्वदा प्रस्तुत रहते थे तथा मातृभूमि की रक्षा करना अपना पुनीत कर्तव्य समझते थे । वैदिक साहित्य में वर्णित देशसेवा के पावन विचार क्या विश्व के अन्य किसी देश के साहित्य में उपलब्ध हो सकते है ? "पृथ्वी मेरी माता है और में उस कर पुत्र हैं", देशप्रेम तथा मातृभूमि के लिए बलिदान को इतनो अनन्य भक्ति एवं कर्त्तव्य भावना अन्यत्र दृष्टिगोचर नहीं होतो । यही देशप्रेम की उत्कट भावना राष्ट्रीयता की जननी है। इसी पुनीत भावना से किसी देश के नागरिकों में सभी राष्ट्रीयता का प्रादुर्भाव होता है। हमारे देश में राष्ट्रीयता के समस्त तत्त्व परिलक्षित होते हैं । किन्तु यह बात निश्चित है कि भारत में राष्ट्रीयता का स्वरूप अन्य देशों से भिन्न रहा हूँ । ६. वेद १२३ राष्ट्र जागृगाम पुरोहितः २. अथर्ववेद १२, १५४ अहमस्मि सहमान उत्तरी नाम म्याम् । मोषस्मि त्राषाडाशामा विषासहि ॥ ३. अथर्ववेद १२.. दामि मधुम सह विपीनानामपूतिमानत्रान्यान् हन्मि दोहतः ॥ ४ अर्व १२, ११२ । माता भूमिः पुत्रों यह पृथिव्याः । 190 • मियोक्षेसह वनन्ति मा । नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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