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रखा है और उन पर पूर्ण नियन्त्रण रखने का राजा को आदेश दिया है।८, २१)। राजा को उन की उपेक्षा कभी नहीं करनी चाहिए और उन को कठोर दण्ड देना चाहिए, क्योंकि वे लोग अल संग्रह कर के मूल्यों में वृद्धि कर देते है जिस से जनता को अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है । ये लोग अन्न-संकट के उत्पन्न करने वाले हैं अत: राजा को सदैव इन से सावधान रहना चाहिए। आचार्य सोमदेव का कथन है कि जो राजा मोर गागों को प्रोत्रा करता है उसका नाता है (८,२७)। इस के अतिरिक्त आचार्य सोमदेव ने दुभिक्ष तथा संकट काल का सामना करने के सम्बन्ध में भी राजा को बहुत सुन्दर परामर्श दिया है। आचार्य का कथन है कि राजा को घान्य एवं लवण का संग्रह करना चाहिए, क्योंकि यही दो बस्तुएं संकटकाल में प्रजा और सेना को जीवित रखती हैं ( ८, ६६ तथा ७१ ) । उन का कथन है कि अन्न संग्रह सब संग्रहों में उत्तम है ( १८, ६६)। इस का कारण यही है कि अन्न के द्वारा प्रजा और सेना की जीवन-यात्रा चलती है। इस के माहत्त्व को आचार्य उदाहरणों से भी व्यक्त करते है। वे कहते है कि मुख में डाला हुआ स्वर्ण भी प्राण को रक्षा नहीं करता, अन्न ही प्राणों का रक्षक है ( १८, ६८)। धान्य-संग्रह न करने से होने वाली हानि की ओर भी संकेत किया है। इस सम्बन्ध में आचार्य ने लिखा है कि जो राजा अपने देश में धान्य-संग्रह नहीं करता और अधिक व्यय करता है तो उस के राज्य में सदैव दुभिक्ष रहा करता है ( ८, ६)। अतः राजा को शरद् भोर ग्रीष्म ऋतु में दोनों फसलों के समय धान्य-संग्रह कर लेना चाहिए। यह धान्य दुभिक्ष के समय प्रजा को भी उचित मूल्य पर दिया जा सकता है । इस प्रकार जनता संकटकाल का सामना आसानी से कर लेती है।
इस प्रकार नोति शश्यामृत में राज्य की आर्थिक स्थिति को सृवृद्ध बनाने, कोषवृद्धि करने, व्यापार एवं वाणिज्य पर नियन्त्रण रखने एवं वस्तुओं का मूल्य निर्धारित करने के सम्बन्ध में बहुत उपयोगी विचार व्यक्त किये गये है। सोमदेव ने कृषि, घ्यापार एवं पशुधन को राज्य को आर्थिक समृद्धि की आधारशिला बतलाया है । आचार्य के उपर्युक्त आर्थिक सिद्धान्त आधुनिक युग के लिए भी महीपयोगी है ।
नौतिवाक्यामृत में राजनीति