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________________ पदार्थों में मिश्रण, तौल में न्यूनता तथा हार्गों भूण्य में गहिराला पर्गको स्वाभाविक मनोवृत्ति होती है। दणिक्जनों को नाप-तौल में अनियमितता करने तथा मिथ्या व्यवहार के कारण सोमदेव ने उन्हें पश्यतो हर बतलाया है (८, १७)। पश्यतो हर शब्द स्वर्णकार के लिए है किन्तु उक्त दूषित प्रवृत्तियों के कारण ही आचार्य सोमदेव ने पणिजन को भी पश्यतो हर कहा है। व्यापारी-वर्ग को अधिक लाभ लेने से रोकने तथा वस्तुओं का मूल्य निर्धारित करने की ओर भी उन्होंने संकेत किया है (८, १५)। व्यापारी-वर्ग मूल्य में वृद्धि करने के उद्देश्य से संचित धान्य भण्डारों का विक्रय रोक देते हैं इस से राज्य की आर्थिक स्थिति बहुत गम्भीर हो जाती है और जनता को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है। अतः आर्थिक व्यवस्था को ठोक रखने के लिए राजा का यह कर्तव्य है कि वह व्यापार में नाप-तौल की सच्चाई की रक्षा करे । इस के साथ ही राज्य में आर्थिक सुव्यवस्था एवं उस के सम्मान की रक्षा के लिए व्यापारी-वर्ग में सत्य निष्ठा उत्पन्न करे ( १८, १६)। जहाँ व्यापारी लेन-देन में झूठ का व्यवहार करते हैं, जहां की तुला अविश्वसनीय है उस देश का व्यापारिक स्तर अन्य देशों की दृष्टि में हीन और अविश्वसनीय हो जाता है (१८, १३ ) 1 इस के परिणामस्वरूप राज्य के व्यापार को महान् क्षति पहुँचती है । इस कारण व्यापार में सत्यता का पालन परम आवश्यक है। जहाँ पर व्यापारी लोग मनमामा मूल्य बढ़ाकर वस्तुओं को बेचते है और कम से कम मूल्य में खरीदते हैं वहीं को जनता दरिद्र हो जाती है (८, १४)। अतः गजा को वहां को ठीक व्यवस्था करनी चाहिए । अन्न, वस्त्र और स्वर्ण आदि पदार्थों का मूल्य देश, काल और पदार्थों के ज्ञान की अपेक्षा से होना चाहिए (८,१५)। जो राजा यह जानता है कि मेरे राज्य में या अमुक देश में अमुक वस्तु उत्पन्न हुई है अथवा नहीं उसे देशापेक्षा कहते है। इस समय अन्य देश से हमारे देश में अमुक वस्तु का प्रवेश हो सकला है अथवा नहीं इसे कालापेक्षा कहते है। राजा का कर्तव्य है कि वह उक्त, देश-कालादि को उपेक्षा का ज्ञान कर के समस्त वस्तुओं का मूल्य निर्धारित करे जिस से व्यापारी लोग मूल्य बढ़ाकर प्रजा को निर्धन न बना सकें। इस के साथ ही राजा को उन व्यापारियों की परीक्षा भी करते रहना चाहिए जो बहुमूल्य वस्तुओं में मिलावट करते है, दो प्रकार को तुला रखते हों तथा नापने, तौल ने के बाटों आदि में कामो-बेशी करते हों ( ८, १६ ) । यदि व्यापारी लोग परस्पर को ईष्या के कारण वस्तुओं का मूल्य बढ़ा देखें तो ऐसी स्थिति में राजा का यह कर्तव्य हो जाता है कि यह बढ़ाये हुए मूल्य को व्यापारी-वर्ग से छीन ले और उन्हें केवल "उचित मूल्य हो 2 (८,१८)। यदि किसी व्यापारी ने किसी की बहुमूल्य वस्तु को चोखा देकर अल्प मूल्य में क्रय कर लिया है तो राजा विक्रेता की बहमूल्य वस्तु पर अपना अधिकार कर ले एवं विक्रेता को सतना मूल्य दे, जितना कि उस ने क्रेता को दिया था {८,१९) । अन-संग्रह करने वालों को आचार्य सोमदेव ने राष्ट्र-कण्टकों की सूची में कोष १२९
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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