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________________ रिक्त राजकोष की पूर्ति के उपाय आचार्य सोमदेवसूरि ने रिक्त डाला है । उन के अनुसार राजकोष की राजकोष की पूर्ति के उपायों पर भी प्रकाश पूर्ति के निम्नलिखित उपाय हैं १. ब्राह्मण और व्यापारियों से उन के द्वारा संचित किये हुए धन में से क्रमश: धर्मानुष्ठान, यज्ञानुष्ठान और कौटुम्बिक पालन के अतिरिक्त जो धनराशि शेष बचे उसे लेकर राजा को अपनी कोष वृद्धि करनी चाहिए । २. धनाढ्य पुरुष सन्तान विहीन, धनी व्यक्ति, विधवाओं का समूह और कापालिक - पाखण्डी लोगों के धन पर कर लगाकर उनकी सम्पत्ति का कुछ अंश लेकर अपने कोष की वृद्धि करे । ३. सम्पत्तिशाली देशवासियों की प्रचुर धनराशि का विभाजन भो-भाँति निर्वाह मोग्म धनराशि छोड़कर उन से आर्थना पूर्वक धन कोष की वृद्धि करनी चाहिए । ४. अचल सम्पत्तिशाली मन्त्री, पुरोहित और अधीनस्थ सामन्तों से अनुनय और विनय कर के उन के घर जाकर उन से धन याचना करनी चाहिए। और उस धन से अपने कोष की वृद्धि करनी चाहिए ( २१, १४ ) । इस प्रकार उक्त चार साधनों से राजा की अपने रिक्त राजकोष की वृद्धि करने का प्रयत्न करना चाहिए। राजा को सर्वदा इस कार्य में प्रयत्नशील रहना चाहिए। उसे अपना राजकोष कभी रिक्त नहीं रहने देना चाहिए। कोष ही राज्य की प्राणशक्ति है और उस के अभाव में वह नष्ट हो जाता है। आय व्यय कर के उन के ग्रहण कर के सम्पत्ति उत्पन्न करने वाले न्यायोचित साधन अथवा उपाय, कृषि, व्यापारादि एवं राजा द्वारा उचित कर लगाना आदि को आय कहा गया है। स्वामी की आज्ञानुसार धन खर्च करना व्यय है। आचार्य सोमदेव का कथन है कि राजा अपनी आय के अनुकूल हो व्यय करे, क्योंकि जो राजा आय का विचार न कर के अधिक व्यय करता है वह कुबेर के समान असंख्य धन का स्वामी आचरण करने वाला हो जाता है ( १६, १८) । एक अन्य नित्य धन के व्यय से सुमेरु भी क्षीण हो जाता है (८, ५) आय व्यय वाला कार्य आनन्ददायक है । शुक्र का कथन है आय का षद्-भाग सेना पर व्यय करें, बारह भाग दान में, मन्त्रियों पर अन्य राजकर्मचारियों पर तथा अपने व्यक्तिगत कार्यों पर व्यय करे। इन समस्त बातों का अभिप्राय यही है कि राजा को अधिक व्यय नहीं करना चाहिए । होकर भी भिक्षुक के समान स्थान पर वे लिखते हैं कि आचार्य के विचार से समान कि राजा अपनी वार्षिक १. ० १.३१५-१७ | १२० नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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