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पीति याजयाम्
होना असंभव हो जाता है और पश्चाताप का कारण बनता है । इसलिए अवसर पाकर शान्ति से कार्य करना उत्तम } कुन्दकुन्द स्वामी ने कुरल काव्य में कहा है
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कार्यकालं प्रतीक्षन्ते जोषं हि जयरागिणः I न क्षुभ्यन्ति कदाचित्ते नाप्युक्त्तापविधायिनः ॥15 ॥
अर्थ :- जिनके हृदय में विजय कामना है के शान्त- चुप अवसर की प्रतिक्षा करते हैं । वे न तो व्याकुल होते हैं और न ही दुःखानुभव करते हैं, धैर्य से काम लेते हैं ।
जय इच्छुक हैं देखते, अवसर को चुपचाप । विचलित हो करते नहीं, सहसा कार्य कलाप | 15 |
यदि स्वावसरं वेत्सि साधनानि तथैव च शक्नोषि निजवीर्येण विजेतुं जगती तलम् ॥4॥
यदि मनुष्य यथायोग्य अवसर ज्ञात करले और तदनुकूल साधनों का संचयन कर ले तो अपनी निज शक्ति से समस्त भूतल पर विजय प्राप्त कर सकता है। अतः विघ्नों को दूर करना है तो विचारपूर्वक कार्य करो । क्योंकि श्रेयांसि बहु विघ्नानि, भवन्ति महतामपि अश्रेयसि प्रवृत्तानां यान्ति क्वापि विलीनता "
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अर्थ :- कल्याण रूप कार्यों में महापुरुषों को भी अनेक विघ्न आना संभव है, परन्तु पापी पुरुषों के विघ्न कदाचित् विलीन भी हो जाते हैं । अस्तु हर क्षण सावधान रहना चाहिए ।
"पाप में प्रवृत्त पुरुष का स्वरूप"
कुरल ॥
अधर्मकर्मणि को नाम नोपाध्यायः पुरश्चारी वा ॥ ३8 ॥
अन्वयार्थ : (अधर्मकर्मणि) पापरूप क्रियाओं में (को) कौन (नाम) नामधारी (उपाध्यायः) उपदेशक (वा) अथवा (पुरश्चारी) अगुआ (न) नहीं होता ?
पाप कार्यों में प्रवृत्त मनुष्यों को उपदेश देने वाला अथवा उनका अग्रेसर बनने वाला कौन नहीं बनता ? बहुत लोग हो जाते हैं ।
विशेषार्थ :लोक में पाप कार्य में सहयोग देने वालों की कोई कमी नहीं । बिना पूछे ही नेता बन जाते हैं। दुष्कर्मियों की कमी नहीं है, बिना पैसे के नेता बनना कौन नहीं चाहेगा ? सभी चाहेंगे । वे नेतागिरी में अपनी तारीफ भी करते हैं और दूसरों को उस दुष्कृत्य में शामिल कर अपना मण्डल तैयार करते हैं। यहाँ कहने का अभिप्राय यह है कि सदाचारियों को ऐसे दुराचारियों से सावधान रहना चाहिए । आचार्य श्री गुणभद्र स्वामी ने कहा है
" जनाः धनाश्च बाचाला सुलभा स्यु वृथोत्थिता" व्यर्थ की गर्जना करने वाले घन बादल और निरर्थक वकवास . करने वाले पुरुष सुलभता से प्राप्त हो जाते हैं । रैभ्य ने भी कहा है।
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