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नीति वाक्यामृतम्
अर्थ :-- अपने से जो अल्पबुद्धि वाले हैं उनके प्रति अनुग्रह बुद्धि रखना अनिवार्य है । अपने बराबर आयु वित्त बुद्धि बालों के साथ सज्जनता और पूज्य महापुरुषों के साथ महान् विनय सम्मान-भक्ति का वर्ताव करना चाहिए। यह उच्च व चित्र चारित्रधारी उदात्त मुझ (सोमदेव) का सिद्धान्त है । तथाऽपि जो व्यक्ति अत्यधिक अहंकार से- गर्व से गर्विष्ठ हुए दुराग्रही होकर मुझसे स्पर्धा करते हैं - अकड दिखाते हैं उनके अहं रूप पर्वत को भेदन करने के लिए मेरे वचन वज्र के समान कराल काल मृत्यु तुल्य आचरण करते हैं ।।१॥ हे वाद-विवाद की खाज खुजाने वाले म तो तू समस्त शास्त्रों-दर्शनशास्त्रों पर तर्क करने के लिए अकलक देव के समान है, और न ही तू जैन सिद्धान्त निरुपण करने के लिए "हंससिद्धान्त देव" है । और न व्याकरण में पूज्यपाद के समान उसका पारदर्शी है, फिर इस समय में सोभदेवसूरि के साथ किस बूते पर वार्तालाप करने को तैयार हुआ है ।।2। श्री सोमदेव सूरि राजा के समान शुभ्र गुण-विभूषित हैं, क्योंकि वे दुर्जन रूपी कटीले वृक्षों को जड़ मूल से उखाड़ फेंकने निग्रह करने में तीक्ष्ण कुठार, तर्कशास्त्र-न्यायशास्त्र और दर्शनशास्त्र में परम प्रवीण हैं । जिस प्रकार राजा राजनीतिशास्त्र पारंगत होने पर अन्याय उन्मूलनार्थ दुर्जनों को कठोर दण्ड देकर शान्त कर देता है उसी प्रकार श्री सोमदेवाचार्य जी तीक्ष्ण गम्भीर विचार विमर्श में वलिष्ठ और अपनी ललित दार्शनिक मनोनुकूल प्रवृत्ति द्वारा वादियों को परास्त करने वाले हैं । राजकीय पक्ष में मुद्दई के मनोरथों को पूर्ण करने वाला, तुला के समान परीक्षा द्वारा केस (मुकदमे की) सत्यता का निर्णायक होता है । इस प्रकार श्री सोमदेव स्वामी अपनी विद्वत्ता और जान गरिमा से राजा सदृश शोभायमान होते हैं IB ||
जो विद्वान अपनी विद्वता के अत्यधिक अभिमानी हैं उन उन्मत्त मदोन्मस विद्वान रुपी कुञ्जरों-हाथियों से मद का मर्दन करने में शेर समान हैं, उन्हें अपनी ललकार रूप गर्जना-ताड़ना से पलायित करने वाले, वादी रूपी गजों को परास्त क करने वाले और तार्किक चूडामणि अर्थात् तर्कशास्त्र विज्ञानियों में मूर्धन्य-सर्वोपरि सोमदेव सूरि के समक्ष वाद के समय साक्षात् वृहस्पति भी ठहरने में सक्षम नहीं हो सकता, अन्य की बात ही क्या है ? अन्य साधार पण्डित विद्वानों की तो बात ही क्या है ? अर्थात् वे तो क्षणभर भी टिक ही नहीं सकते।
॥ इति ग्रन्थकार की प्रशस्ति समाप्त ॥
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