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________________ नीति वाक्यामृतम् तात्कालिक क्षणिक सुखाभिलाषी पुरुष कर्ज ऋण लेकर अर्थात् दूसरे से उधार लेकर धार्मिक क्रिया, सुख साधन कार्य विवाद, सेवा आदि की ऐसा और व्यापारादि करते हैं परन्तु भविष्य में स्थायी सुखेच्छु इस प्रकार ऋणी होकर राजादि की सेवादि कार्य नहीं करते 1114 ॥ दाता को अपने पास जो कुछ भी हो उसी में से यथायोग्य दान देना चाहिए। ऋणादि लेकर नहीं 1115 | गृहस्थाश्रम को परम मित्र कहा है : अनाथानां हि नाथोऽयं निर्धनानां सहायकृत् निराश्रितामृतानाञ्च गृहस्थाः परमः सखा ॥12 ॥ कुरल काव्य प.च्छे 5 अर्थात् गृहस्थ अनाथों का नाथ, दरिद्रों का सहायक और निराश्रितों मृतकों का मित्र है । गर्ग विद्वान ने भी दोनों विषयों का समर्थन किया है : धर्मकृत्यं ऋणप्राप्त्या सुखं सेवा परं परम । तादात्विक विनिर्दिष्टं तद्धनस्य न चापरं ।।1 ॥ अविद्यमानं यो दयाद्दणं कृत्वापि वल्लभः ! कुटुम्बं पीड्यते येन तस्य पापस्य भाग्भवेत् ॥2॥ ऋण देने वाले धनी पुरुष को अनेक कटुफल भोगने पडते हैं । यथा 1 सर्व प्रथम उसे ऋण लेने वाले की सेवा सुश्रुषा करना पडता है । 2. कलह-यदि ऋणी समयानुसार धनराशि नहीं लौटाता तो उसके साथ कलह विसंवाद करना पडता है । 3. तिरस्कार ऋण लेने वाले के द्वारा अपमानित होना पडता है । 4. अवसर आने पर धन न मिलने से स्वयं की कार्यक्षति उठाना सारांश यह है कि किसी को ऋण रुप में धन देना योग्य नहीं 1116 ॥ धनवान के साथ स्नेह, प्रियभाषण, सज्जनता का व्यवहार तभी तक दर्शाता है जब तक कि उससे धन प्राप्त नहीं होता, धन मिलने पर उसका सारा व्यवहार विपरीत हो जाता है । शिष्टाचारादि को भूल जाता है ||17 ॥ अत्रि एवं शुक्र ने भी यही कहा है : उद्धारक प्रदातृणां त्रयो दोषाः प्रकीर्तिताः स्वार्थदानेन सेवा च युद्धं परिभवस्तथा ॥11॥ तावत्स्नेहस्य बन्धोऽपिततः पश्चाच्च साधुता । ऋणकस्य भवेद्यावत्तस्य गृह्णाति नो धनम् ॥2 ॥ अर्थात् ऋण देने से उपर्युक्त हानि होती हैं ।। वचनों की सत्यता व असत्यता का मापदण्ड वक्ता का अभिप्राय माना जाता है । इष्ट प्रयोजन-प्राणी रक्षार्थ मिथ्या वचन भी सत्य की कोटि में आता है । अर्थात् वह वचन असत्य होने पर भी मिथ्या नहीं माना जाता जिससे 581
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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